सोनभद्र: तहसील समाधान दिवस में छात्र नेता ने बताया अधिकारियों को गंभीर समस्या, जानकर आप हो जाएंगे हैरान!

सोनभद्र: तहसील समाधान दिवस में आज एक ऐसा मुद्दा गरमाया जिसने अधिकारियों को सोचने पर मजबूर कर दिया. छात्र नेता अभिषेक अग्रहरी ने डाला-चोपन मार्ग की खस्ताहालत और वहां व्याप्त प्रदूषण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. अपनी दमदार आवाज में उन्होंने अधिकारियों को एक शिकायती पत्र सौंपा, जिसमें सड़क की दुर्दशा और प्रदूषण के कारण हो रही परेशानियों का पुलिंदा बांधकर रख दिया.

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अभिषेक अग्रहरी ने अपने पत्र में डाला-चोपन मार्ग की दर्दनाक तस्वीर पेश की। उन्होंने बताया कि सड़क के दोनों ओर धूल, मिट्टी और गिट्टी का ऐसा अंबार लगा है कि सांस लेना भी दूभर हो गया है. रही-सही कसर बड़े-बड़े झाड़ों ने पूरी कर दी है, जिन्होंने सड़क को इतना संकरा कर दिया है कि गाड़ियां रेंग-रेंग कर चलती हैं और हर पल दुर्घटना का डर बना रहता है.

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती! छात्र नेता ने आगे बताया कि इस मार्ग पर लगाई गई महंगी हाई मास्क लाइटें सिर्फ खंभे बनकर रह गई हैं. उनकी रोशनी कब की गुम हो चुकी है, जिसके चलते रात में यह सड़क भूत बंगले से कम नहीं लगती और राहगीरों की सुरक्षा भगवान भरोसे रहती है.

अभिषेक ने अधिकारियों को पिछली याद भी दिलाई। उन्होंने बताया कि इस गंभीर समस्या को लेकर उन्होंने पहले भी ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराई थी। तब साहब लोगों ने बड़े मीठे शब्दों में बरसात के बाद सब ठीक करने का वादा किया था. लेकिन, शिकायत दर्ज हुए पूरे एक साल बीत चुका है और हालात जस के तस हैं, “वादा क्या हुआ, तेरा वादा…” वाली स्थिति बनी हुई है.

गुस्से से भरे छात्र नेता ने यह भी कहा कि अधिकारियों की इस लापरवाही का खामियाजा आम जनता भुगत रही है. बरसात के दिनों में तो सड़क तालाब बन जाती है, जिससे लोगों का चलना फिरना मुश्किल हो जाता है और उन्हें भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है.

अभिषेक अग्रहरी ने अधिकारियों से हाथ जोड़कर विनती की है कि अब तो इस गंभीर समस्या पर ध्यान दें और कुछ ठोस कदम उठाएं. उन्होंने मांग की है कि डाला-चोपन मार्ग को धूल और झाड़ियों से मुक्त कराया जाए, खराब पड़ी लाइटों को ठीक किया जाए, ताकि लोगों को प्रदूषण और यातायात की समस्याओं से मुक्ति मिल सके. छात्र नेता ने उम्मीद जताई कि उनकी इस आवाज को अनसुना नहीं किया जाएगा और जल्द ही इस दिशा में कुछ सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे। अब देखना यह है कि अधिकारियों के कानों तक पहुंची यह गुहार कब रंग लाती है और कब डाला-चोपन मार्ग की किस्मत बदलती है.

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