बिहार के भागलपुर जिले के सहजांगी नवटोलिया गांव की रहने वाली खुशी यादव अपने माता-पिता का नाम रोशन करने के साख ही अपने जिले का भी नाम रोशन किया है. खुशी चोट की वजह से 2 साल तक बेड रेस्ट पर रही लेकिन उसके हौसले की वजह से खेलो इंडिया यूथ गेम्स के स्टेपल चेज दौर में उसने गोल्ड मेडल हासिल किया है. घर पर दर्जनों मेडल हैं लेकिन परिवार की माली हालत अब भी बदतर है. खुशी जब मेडल जीत कर वापस लौटीं तो उनका जोरदार स्वागत किया गया.
मेडल जीतकर क्या बोली खुशी यादव?
खुशी यादव ने कहा कि मुझे गोल्ड मेडल जीतकर बहुत खुशी हो रही है. मैं अपने कोच को भी धन्यवाद देना चाहूंगी. मेरी मां को हमेशा ताने मिलते थे. चार बेटी है कैसे भविष्य बनाओगी, शादी में दहेज कहां से दोगी, बाहर खेलने भेजती हो देर से घर आती है, बहुत कुछ समाज से सुनने को मिला. लेकिन मम्मी सभी चीजों को इग्नोर करते हुए मुझ पर भरोसा किया और उसका परिणाम आज दिख रहा है. उसने कहा कि मेरे घर की स्थिति भी बहुत खराब है. ज्यादा गर्मी होने पक पेड़ के नीचे जाकर रहते हैं. बारिश में भी दिक्कत होती है. खेल के दौरान मुझे फाइव स्टार सुविधा मिली एक फोन पर जरूरत की चीजें कमरे में आ जाती थीं. मुझे ओलंपिक तक का सफर तय करना है. मैं अपनी मेहनत से मम्मी-पापा को घर बनाकर गिफ्ट देना चाहती हूं.
World War 3 will be for language, not land! pic.twitter.com/0LYWoI3K0r
— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
‘हमें बेटी पर पूरा भरोसा’
मां सुषमा देवी ने कहा कि खुशी की सफलता से हमें बहुत खुशी मिल रही है. मेरी एक बेटी का नाम राधा एक का नाम गौरी एक का नाम पार्वती है. खुशी का नाम मैंने सबसे हटकर रखा था. उसको इंटरनेशनल तक भेजने का सपना है. मेरी चार बेटी और एक बेटा है लेकिन मैंने सभी को एक समान प्यार दिया है. मैं हमेशा कहती थी या तो मेरे पास पांच बेटा है या पांच बेटी हैं. मुझे बहुत ताने सुनने को मिले. बेटी है, रात में भेजती है, क्या करेगी. लेकिन हम जितेंद्र मणि सर और बच्चे पर भरोसा करते हुए अपने कान को बंद कर बेटी को मेहनत करने के लिए छोड़ दिया. यह सोचकर कि बच्चे आगे जरुर बढ़िया करेंगे. आज हम दुख में हैं तो आगे जरुर खुशी मिलेगी. घर में बहुत दिक्कत है, ज्यादा बारिश होती है तो एक जगह सिमट कर सभी बैठ जाते हैं.
चोटिल होने के बाद दो साल तक चला इलाज
खेत की पगडंडियों पर खुशी के पीछे मेहनत करने वाले कोच जितेंद्र मणि राकेश ने कहा कि अपने भाई के साथ यह पहले ग्राउंड पर आई थी. उस वक्त इसके अंदर प्रतिभा कूट-कूट कर भरी हुई थी. दिमाग से वह काफी पॉजिटिव रहती थी. हर चीज में आगे रहती थी. कोई भी काम हो कहती थी सर यह हम कर लेंगे. एक बार यह तरंग प्रतियोगिता में लांग जंप के दौरान काफी चोटिल हो गई. उसकी जांघ की हड्डी चटक गई थी, तब कोच वसीम अहमद सर ने कोलकाता में 2 साल तक खुशी का इलाज करवाया. हर प्रकार की सहायता दी, उनकी वजह से आज यह स्वस्थ है और मेडल लाने में सफल हुई.
मुझे खुशी है कि मैंने जो बीज बोया वह आज पेड़ बना और उसका फल हम सभी को गौरवान्वित महसूस करवा रहा है. जिस तरह से किसान को फसल में फल आने पर खुशी मिलती है. वही खुशी आज हम सब को हो रही है.