देश के चीफ जस्टिस बीआर गवई की टिप्पणी के बाद जागी महाराष्ट्र सरकार, प्रोटोकॉल को लेकर जारी किया आदेश

भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की हालिया महाराष्ट्र यात्रा के दौरान वरिष्ठ अधिकारियों की अनुपस्थिति पर की गई टिप्पणी के बाद राज्य सरकार हरकत में आ गई है. अब सरकार ने एक सर्कुलर जारी करते हुए मुख्य न्यायाधीश की यात्रा के दौरान पालन किए जाने वाले शिष्टाचार और समन्वय को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए हैं.

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सर्कुलर के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश को अब महाराष्ट्र में स्थायी राजकीय अतिथि का दर्जा प्राप्त होगा. उनकी यात्रा के दौरान सभी आवश्यक सरकारी सम्मान और व्यवस्थाएं की जाएंगी. राज्य सरकार ने आदेश दिया है कि जब मुख्य न्यायाधीश मुंबई में मौजूद होंगे, तब मुख्य सचिव या उनके प्रतिनिधि और पुलिस महानिदेशक (DGP) या उनके प्रतिनिधि अनिवार्य रूप से उपस्थित रहेंगे. वहीं, राज्य के अन्य जिलों में दौरे के समय जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक अथवा उनके प्रतिनिधियों की उपस्थिति सुनिश्चित की जाएगी.

समन्वय अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्य

इसके अलावा सरकार ने अब एक समन्वय अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्य कर दी है, जो दौरे के दौरान संबंधित विभागों के साथ संपर्क बनाए रखेगा. मुंबई के लिए यह जिम्मेदारी विधि एवं न्याय विभाग के प्रथम श्रेणी अधिकारी को दी गई है, जबकि जिलों में यह जिम्मेदारी जिला कलेक्टर की होगी. यह कदम तब उठाया गया जब 18 मई को महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल द्वारा मुंबई में आयोजित एक सम्मान समारोह के दौरान मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई ने मंच से वरिष्ठ अधिकारियों की अनुपस्थिति पर नाराजगी व्यक्त की थी.

प्रोटोकॉल को लेकर की थी टिप्पणी

जस्टिस गवई ने कहा था कि अगर भारत के मुख्य न्यायाधीश पहली बार महाराष्ट्र का दौरा कर रहे हैं और राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और मुंबई पुलिस आयुक्त अनुपस्थित नहीं रहना उचित नहीं लगता है, तो उन्हें इस पर विचार करने की जरूरत है. प्रोटोकॉल के बारे में कुछ भी नया नहीं है. यह एक संवैधानिक संस्था से दूसरी संस्था के प्रति सम्मान का मामला है. लोकतंत्र के तीन स्तंभ न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका समान हैं. संविधान के प्रत्येक अंग को एक दूसरे के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए.

गंभीरता से विचार करना चाहिए

सीजेआई ने कहा कि जब किसी संवैधानिक संस्था का मुखिया पहली बार राज्य में आता है तो उसका स्वागत किस तरह से होता है, इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. अगर ऐसी स्थिति में हम में से कोई होता तो अनुच्छेद 142 पर चर्चा हो सकती थी. मैं महाराष्ट्र के लोकतंत्र की सराहना करता हूं, पुलिस, अधिकारी, हर कोई समावेशी और मिलनसार है. महाराष्ट्र का न्यायिक ढांचा वास्तव में अच्छा है.

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