“शराब नहीं लूट है ये!” – रीवा में ओवररेटिंग का खेल, कब जागेगा प्रशासन?

रीवा : विंध्य की धरा रीवा इन दिनों शराब माफियाओं की मनमानी का नया गढ़ बनती जा रही है. ग्राहकों को खुलेआम लूटा जा रहा है और आलम यह है कि जिला प्रशासन मानो आंखें मूंद बैठा है.ओवररेटिंग, मनमानी कीमतें और एमआरपी से अधिक वसूली का खेल अब इस कदर बढ़ गया है कि ग्राहक खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.

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हैरत की बात तो यह है कि यह स्थिति तब से और विकराल रूप ले चुकी है जब से प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने संभाली है। सवाल उठता है कि क्या नई सरकार में शराब माफियाओं को खुली छूट मिल गई है, या फिर प्रशासन की ढिलाई उन्हें और बेलगाम बना रही है,

खुलेआम ओवरराइटिंग, प्रशासन मौन

रीवा शहर के उर्रहट, समान, पीटीएस ,अमहिया, सिरमौर चौक , ट्रांसपोर्ट नगर , चोरहटा, मैदानी, इटौरा, सहित ऐसी कोई भी शराब की दुकान नही बची जहा लोगो को लूटा न ज रहा हो शराब ठेकेदारों की मनमानी अपने चरम पर है.दुकानो पर नही चस्पा की एमआरपी लिस्ट और ग्राहकों को मजबूरन उन्हीं के बनाये दामों पर शराब खरीदनी पड़ती है.यह ओवर रेटिंग का मामला कोई नया नहीं है.पिछले कई महीनों से लगातार यह शिकायतें खबर के माध्यम से जिला प्रशासन के संज्ञान में लाई जा रही हैं.

समाजसेवी संगठनों से लेकर आम नागरिकों तक ने इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है, लेकिन नतीजा शून्य रहा है.ऐसा लगता है जैसे इन ठेकेदारों को किसी का भय ही नहीं है.

मुख्यमंत्री के बदलते ही क्यों बढ़ी मनमानी

यह गंभीर प्रश्न है कि जब तक पूर्व मुख्यमंत्री थे, तब भी ऐसी शिकायतें आती थीं, लेकिन उन पर कुछ हद तक अंकुश लगाने का प्रयास किया जाता था। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के आते ही आखिर ऐसा क्या बदल गया कि शराब माफिया बेखौफ होकर ग्राहकों की जेब काट रहे हैं और जिला प्रसाशन हाथ पे हाथ रखे बैठा हुआ है क्या यह प्रशासन की निष्क्रियता है या फिर इन ठेकेदारों के राजनीतिक कनेक्शन इतने मजबूत हो गए हैं कि उन पर कार्रवाई करने से अधिकारी भी कतरा रहे हैं?

यह स्थिति मुख्यमंत्री की सुशासन की छवि पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है। जनता को यह महसूस हो रहा है कि नई सरकार में आम आदमी की बजाय माफियाओं को ज्यादा तरजीह मिल रही है.

कहाँ गए आबकारी विभाग और पुलिस के दावे

आबकारी विभाग और पुलिस प्रशासन, दोनों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे शराब की अवैध बिक्री और मनमानी वसूली पर रोक लगाएं.समय-समय पर अभियान चलाने और नियमों का पालन न करने वाले ठेकेदारों पर कार्रवाई करने के दावे तो बहुत किए जाते हैं, लेकिन रीवा की मौजूदा स्थिति इन दावों की पोल खोल रही है.क्या आबकारी अधिकारी सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ा रहे हैं, या फिर उन्हें जमीनी हकीकत से कोई सरोकार नहीं पुलिस प्रशासन की गश्त और निगरानी क्यों सवालों के घेरे में है.

ग्राहक अब क्या करें खुद को समझ रहे असहाय

रीवा के शराब ग्राहक अब खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि आखिर वे अपनी शिकायतें लेकर किसके पास जाएं.जब जिला प्रशासन और संबंधित विभाग ही इन शिकायतों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, तो आम आदमी की सुध कौन लेगा? यह स्थिति न सिर्फ आर्थिक शोषण है, बल्कि कानून-व्यवस्था पर भी एक बड़ा प्रश्नचिह्न ह

कुंभकर्णि नींद से कब जागेगा प्रशासन

यह समय आ गया है जब जिला प्रशासन को अपनी कुंभकर्णी नींद से जागना होगा। शराब ठेकेदारों की मनमानी पर तुरंत लगाम लगाई जाए। नियमित औचक निरीक्षण किए जाएं और ओवर रेटिंग करने वाले ठेकेदारों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। यदि प्रशासन अब भी निष्क्रिय बना रहता है, तो यह माना जाएगा कि इस पूरे खेल में कहीं न कहीं उनकी भी मिलीभगत है.मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को भी इस मामले का संज्ञान लेना चाहिए  जिले में चल रही इस लूट-खसोट को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए.अन्यथा, शराब माफियाओं का यह खेल उनकी सरकार की छवि को भी धूमिल करेगा.

 

 

उदाहरण के लिए:

प्लेन शराब – एमआरपी ₹70, बिक्री ₹90
मसाला शराब- एमआरपी ₹100, बिक्री ₹150
किंगफिशर: एमआरपी ₹199, बिक्री ₹250
P-10000- एमआरपी ₹150, बिक्री ₹200

पावर केन-1000: एमआरपी ₹130, बिक्री ₹150

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