बिहार समस्तीपुर जिले के बिथान प्रखंड क्षेत्र के जगमोहरा गाँव के समीप करेह, कमला एवं कोसी नदी के त्रिवेणी संगम स्थल पर आयोजित 10 दिवसीय मिथिला महाकुंभ का मंगलवार को विधिवत समापन हुआ.
अंतिम दिन श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी में शाही स्नान कर पुण्य व लाभ प्राप्त किया. इस आयोजन ने धार्मिक आस्था, आध्यात्मिक साधना एवं सांस्कृतिक विरासत को एक साथ जोड़ते हुए जनमानस को गहराई से प्रभावित किया. समापन दिवस पर संगम तट पर एक दिवसीय शिवचर्चा का विशेष आयोजन किया गया.
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इस अवसर पर मुख्य अतिथि गुरुभाई डोमि ने शिवचर्चा में उपस्थित लोगों महादेव को अपना गुरु बनाने का आग्रह किया। सैकड़ों लोगों ने देवाधिदेव महादेव का शिष्य बनकर खुद का अहोभाग्य माना। एक दिवसीय शिव चर्चा में स्थानीय एवं दूसरे जिले के गुरू भाई बहनों ने अपने-अपने विचार व भजन प्रस्तुत कर लोगों को गुरू के प्रति समर्पित होना के लिए प्रेरित किया. सहरसा आए गुरु भाई गजेंद्र यादव ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि वरेण्य गुरू भ्राता साहब हरीन्द्रानंद जी ने हम लोगों को बताया है कि शिव जगत गुरू है अर्थात संसार के जितने भी लोग है सभी उनके शिष्य हैं। हम सदियों से उनका भगवान भाव से पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। यदि हम उन्हें गुरू भाव से याचना पूर्वक दया मांगे तो हमारा कल्याण निश्चित होगा। यदि इस संसार के एक-एक लोग उन्हें शिष्य बनकर गुरु भाव दे तो पूरे जगत का कल्याण निश्चित रूप से सुगमता से हो जायेगा. हमलोगों का पहला कार्य है। अपने आसपास के लोगों को प्रेरित कर उन्हें भी जागृत करना और शिव शिष्य परिवार का विस्तार करना.
कार्यक्रम में मंच का संचालन गुरुभाई भूषण ने किया। महाकुंभ के दौरान प्रतिदिन धार्मिक अनुष्ठान, साधना सत्र, कथा वाचन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजित की गईं, जिनमें मिथिला की परंपरा और लोक संस्कृति की झलक देखने को मिली. आयोजन समिति के अनुसार, इस महाकुंभ का उद्देश्य धार्मिक एकता, सांस्कृतिक जागरूकता एवं मिथिला की ऐतिहासिक धरोहर को पुनर्जीवित करना था. श्रद्धालुओं, संतों और ग्रामीण जनों की सहभागिता से यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व का रहा, बल्कि सामाजिक सौहार्द और लोक-संस्कृति के संरक्षण की दिशा में भी एक सफल पहल के रूप में सामने आया.
मिथिला महाकुंभ में आए हुए अतिथियों ललितेश्वर प्रसाद यादव उर्फ ललन यादव, राजेश कुमार राकेश, सत्यनारायण, लक्ष्मी, शम्भू कुमार, गुरु बहन मनीषा देवी को समिति के सदस्यों द्वारा मिथिला परम्परा के अनुसार पग चादर से सम्मानित किया गया.