इटावा: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गौ-संरक्षण के प्रति दिखाई गई अटूट प्रतिबद्धता और इस दिशा में करोड़ों रुपये की लागत से चल रही गौशाला योजनाओं पर अब न सिर्फ सवाल उठने लगे हैं, बल्कि उनकी विश्वसनीयता पर भी गहरे दाग लग रहे हैं.
इटावा जनपद के चकरनगर तहसील के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत बरचोली से सामने आई एक हृदयविदारक घटना ने न केवल स्थानीय प्रशासन की घोर लापरवाही उजागर की है, बल्कि प्रदेश सरकार की मंशा और जमीनी सच्चाई पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं.गांव की एक गौशाला के बिलकुल पास 50 से अधिक गायों के कंकाल बिखरे हुए मिले हैं.
यह दृश्य किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को विचलित करने के लिए पर्याप्त है और यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि जिन गौशालाओं को बेसहारा और बीमार गायों के संरक्षण, देखभाल और सेवा का पवित्र केंद्र माना जाता है, वे कहीं-कहीं मौत के अड्डे बनती जा रही हैं.
शवों का अंबार: क्षेत्र में मचा भारी हड़कंप
ग्राम पंचायत बरचोली के ग्रामीण उस समय सन्न रह गए जब उन्होंने एक सुनसान और उपेक्षित पड़े क्षेत्र में दर्जनों गायों के कंकाल देखे। इन कंकालों की संख्या इतनी अधिक थी कि यह किसी प्राकृतिक मौत या अलग-अलग समय में हुई छिटपुट घटनाओं का परिणाम नहीं लग रहा था. यह साफ तौर पर एक साथ बड़ी संख्या में गायों की मौत और संभवतः उन्हें सामूहिक रूप से दफन करने या ठिकाने लगाने का मामला प्रतीत होता है.
चारों तरफ पसरी दुर्गंध और हड्डियों का ढेर, उस स्थान को किसी भयावह कब्रिस्तान में तब्दील कर चुका था.इस घटना के बाद पूरे क्षेत्र में हड़कंप मच गया है और ग्रामीणों में भारी आक्रोश है.स्थानीय लोग अपनी आंखों के सामने इस तरह के भयावह मंजर को देखकर स्तब्ध हैं और प्रशासन से तुरंत कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.
गौशालाएं बनी ‘मृत्युगृह’?
व्यवस्था पर उठे गहरे सवाल सबसे बड़ा और अहम सवाल यह है कि क्या इन गायों को गौशाला में उचित देखभाल, पर्याप्त चारा या समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाई? अगर गायें तड़प-तड़प कर भूख, प्यास या बीमारी से मरी हैं, तो यह सीधे तौर पर राज्य सरकार की सबसे प्राथमिक नीतियों में शामिल गौ-संरक्षण कार्यक्रम पर सीधा प्रहार है.
यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब सरकार द्वारा हर जिले में लाखों रुपये की लागत से गौशालाएं चलाई जा रही हैं, उनके लिए पर्याप्त बजट आवंटित किया जा रहा है, तब गायों की इस तरह सामूहिक मौत होना और उनके कंकालों का खुले में इस तरह पड़ा मिलना एक गंभीर प्रशासनिक अपराध है.
यह घटना गौशालाओं के प्रबंधन और उनके संचालन की वास्तविक स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करती है.क्या ये गौशालाएं वास्तव में गायों की शरणस्थली हैं या फिर उनकी उपेक्षा का गढ़ बनकर ‘मृत्युगृह’ में तब्दील हो गई हैं?
एसडीएम का बचाव और अधूरी दलीलें
इस संवेदनशील मुद्दे पर जब चकरनगर के उपजिलाधिकारी (एसडीएम) से संपर्क किया गया तो उन्होंने एक अजीबोगरीब और अविश्वसनीय दलील देते हुए कहा कि “वहां पहले से गायों को दफन किया गया था, अब मिट्टी हटने के कारण कंकाल नजर आ रहे हैं.” परंतु यह स्पष्टीकरण कई गंभीर सवाल खड़े करता है, जो उनकी दलील को बेतुका साबित करते हैं.
बिना बारिश मिट्टी कैसे हट गई? अप्रैल-मई का महीना चल रहा है, जब उत्तर प्रदेश में आमतौर पर भीषण गर्मी और शुष्कता रहती है.इस दौरान बारिश की कोई बड़ी घटना नहीं हुई, फिर इतने बड़े क्षेत्र से मिट्टी कैसे हट गई कि सैकड़ों गायों के कंकाल बाहर आ गए? क्या हवा या जानवरों द्वारा इतनी मिट्टी हटाना संभव है?
क्या गायों को सतही रूप से दफन किया गया था? यदि गायों को सही ढंग से दफन किया गया होता तो कंकाल इतनी आसानी से और इतनी जल्दी बाहर नहीं आते। इससे यह आशंका बलवती होती है कि जानवरों को सतही रूप से या लापरवाही से दफनाया गया था, जिससे वे आसानी से उजागर हो गए.
एक ही स्थान पर दर्जनों कंकाल? यह सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है। एक ही स्थान पर इतने बड़ी संख्या में कंकालों का मिलना स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि एक बड़ी संख्या में गायों की मौत एक ही समय में हुई है, या मरे हुए जानवरों को छिपाने की कोशिश की गई है। यह किसी सामान्य घटना का परिणाम नहीं हो सकता.एसडीएम का यह बचाव एक तरह से मामले को दबाने या वास्तविकता से मुंह मोड़ने की कोशिश लगता है.
भ्रष्टाचार और मिलीभगत की आशंका
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने हर भाषण और सरकारी कार्यक्रमों में गौ-संरक्षण को अपनी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक बताया है। इस उद्देश्य के लिए भारी फंड भी आवंटित किए जाते हैं, ताकि गौशालाओं का संचालन सुचारू रूप से हो सके और गायों को पर्याप्त सुविधाएं मिल सकें.परंतु इस भयावह घटना से यह सवाल उठता है कि क्या ज़िला प्रशासन और स्थानीय गौशाला प्रबंधन सरकार की मंशा को जानबूझकर पलीता लगा रहे हैं? क्या वे इन फंडों का दुरुपयोग कर रहे हैं? यह मामला केवल लापरवाही नहीं, बल्कि संभावित भ्रष्टाचार और फंड की गड़बड़ी की ओर भी स्पष्ट रूप से इशारा करता है.
ऐसा प्रतीत होता है कि गौशालाओं के नाम पर आने वाले पैसों को अधिकारियों और प्रबंधन द्वारा आपस में बांट लिया जाता है, जिससे गायों को न तो पर्याप्त चारा मिलता है और न ही समय पर चिकित्सा.
उच्चस्तरीय और निष्पक्ष जांच की मांग
ग्रामीणों और पशु प्रेमियों ने इस घटना पर गहरा आक्रोश व्यक्त किया है। सोशल मीडिया पर भी इसकी तस्वीरें तेजी से वायरल हो रही हैं, जिससे पूरे राज्य में चिंता और रोष का माहौल है.आम जनता के मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार वास्तव में गौ-संरक्षण के प्रति गंभीर है या यह सिर्फ एक दिखावा है?