सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी है. चीफ जस्टिस बीआर गवई और एजी मसीह की बेंच लगातार तीसरे दिन सुनवाई कर रही है. वक्फ मामले पर सुनवाई के तीसरे दिन सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें दीं. सॉलिसिटर जनरल ने इसे लेकर किसी भी तरह के अंतरिम आदेश का विरोध किया और कहा कि फाइनल हियरिंग के बाद कोर्ट को अगर लगता है कि यह कानून असंवैधानिक है, तो वह इसे रद्द कर सकता है. कोर्ट अंतरिम आदेश से कानून पर रोक लगाता है और इस दौरान अगर कोई संपत्ति वक्फ को चली जाती है, तो उसे वापस पाना मुश्किल हो जाएगा.
उन्होंने दलील दी कि वक्फ़ अल्लाह का होता है और एक बार जो वक्फ़ को गया, उसे पाना आसान नहीं होगा. तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ बनाना और वक्फ को दान करना, दोनों अलग हैं. यही कारण है कि वक्फ करने के लिए पांच साल के प्रैक्टिसिंग मुस्लिम का प्रावधान किया गया है, ताकि वक्फ का इस्तेमाल किसी को धोखा देने के लिए न किया जाए. उन्होंने ट्राइबल एरिया में बढ़ती वक्फ़ संपत्ति को लेकर दलील दी कि अगर कोई आम आदमी ट्राइबल एरिया में जमीन खरीदना चाहे तो ऐसा नहीं कर सकता. कानून इसकी इजाजत नहीं देता, लेकिन अगर वही व्यक्ति वक्फ़ करना चाहे तो वक्फ करने के बाद मुतवल्ली जो चाहे कर सकता है. यह व्यवस्था इतनी खतरनाक है जिस पर रोक लगाए जाने की जरूरत है.
‘हिंदू हूं, वक्फ बनाना चाहता हूं तो यह जायज नहीं’
एसजी ने सुप्रीम कोर्ट में यह भी दलील दी कि कोई भी इस प्रावधान पर कैसे आपत्ति कर सकता है कि गैर मुस्लिमों को भी वक्फ की अनिवार्य अनुमति दी जाए? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले के कानूनों में कही गई बातों पर सवाल उठाया. इसके बाद तुषार मेहता ने कहा कि 1923 से 2013 तक वक्फ करने की योग्यता यह थी कि कोई भी मुस्लिम वक्फ बना सकता है, लेकिन 2013 में किसी भी मुस्लिम शब्द को हटा दिया गया. इसकी जगह किसी भी व्यक्ति को जोड़ दिया गया, लेकिन हालिया संशोधन कानून में अब इसे हटा दिया गया है. अगर मैं हिंदू हूं और वक्फ बनाना चाहता हूं तो यह जायज नहीं है. क्या मैं तब ट्रस्ट नहीं बना सकता जो वही काम करेगा?
इस पर याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने उन्हें टोकते हुए 2010 के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह कहा गया था कि गैर मुस्लिम भी वक्फ बना सकते हैं. सिब्बल ने कहा कि इसीलिए 2013 में यह संशोधन लाया गया था. इस पर एसजी ने कहा कि कोर्ट को देखना होगा कि क्या इस पर रोक लगाने की जरूरत है. यदि कोई हिंदू मस्जिद बनाना चाहता है तो वह बना सकता है. उसे सार्वजनिक ट्रस्ट के रूप में चला सकता है. इस तरह का प्रावधान कि अपंजीकृत ट्रस्ट या संस्थाएं मुकदमा कर सकती है, ये तो अन्य सार्वजनिक ट्रस्टों में भी पाया जाता है. यह केवल वक्फ में ही नहीं है. उन्होंने बॉम्बे ट्रस्ट अधिनियम को इसका ज्वलंत उदाहरण बताया और कहा कि अब प्रश्न यह है कि जब परिसीमा अधिनियम को देश के बाकी हिस्सों में लागू किया जाता है, तो क्या इस स्तर पर इस पर रोक लगाने के लिए पर्याप्त आधार हैं?
‘2013 तक किसी ने नहीं की आपत्ति’
तुषार मेहता ने कहा कि यहां मेरी प्रारंभिक आपत्ति यह है कि हम अकादमिक चुनौतियों पर बहस कर रहे हैं, व्यावहारिकता पर नहीं. इस पर हुजैफा अहमदी ने कहा कि इस मुद्दे को लेकर जनजातीय क्षेत्रों से भी याचिकाएं आ रही हैं. एसजी ने कहा कि जनजातीय क्षेत्रों से भी याचिकाएं आई हैं, जिनमें कहा गया है कि उन्हें परेशान किया जा रहा है. वक्फ के जरिए उनकी जमीन हड़पी जा रही है. अब शरिया कानून को ही लें. उन्होंने कहा कि 2013 तक व्यक्ति का मुसलमान होना अनिवार्य था, तब तो किसी ने आपत्ति नहीं की. तुषार मेहता ने कहा कि यदि मैं शरिया कानून का उपयोग करना चाहता हूं और पर्सनल लॉ से शासित होना चाहता हूं, तो मुझे यह साबित करना होगा कि मैं मुसलमान हूं. शरिया अधिनियम सभी मुसलमानों पर पर्सनल लॉ के रूप में लागू है.
उन्होंने कहा कि यदि एक मुसलमान के रूप में मुझे किसी अधिकारी को यह बताना पड़े कि मैं मुसलमान हूं, तो यह भी वक्फ के अंतर्गत आता है. यहां ये न्यूनतम अवधि 5 साल है. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि आप 5 साल तक वक्फ बनाकर किसी के जायज दावे को नहीं हरा सकते. इस दलील के साथ मैंने कई निर्णयों का हवाला भी दिया है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कुछ याचिकाएं हैं, जिनमें 1995 के अधिनियम को चुनौती दी गई है. उस पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूं. इस पर सीजेआई ने कहा कि हम 1995 के अधिनियम को चुनौती देने वाली किसी भी याचिका पर विचार नहीं करेंगे. इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मैं कुछ और कह रहा हूं.
उन्होंने कहा कि अगर हमें हाईकोर्ट भेजा गया तो उन्हें भी हाईकोर्ट भेजें. यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि यह मुद्दा नहीं उठा रहा हूं. यह न्यायालय इस पर सुनवाई कर सकता है. उन्होंने राम जन्मभूमि मामले में फैसले का हवाला देते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड की ओर से दायर याचिका स्वीकार कर ली गई है. इस बात पर विवाद नहीं कर रहा हूं कि उपयोगकर्ता की ओर से वक्फ एक स्वीकृत प्रथा है. यह नहीं कह रहा हूं कि ऐसा नहीं था, इसे अब हटा दिया गया है. तुषार मेहता ने कहा कि यह वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त एक प्रथा थी, जिसे वैधानिक रूप से समाप्त किया जा सकता है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के बाद राजस्थान सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने दलीलें दीं और तुषार मेहता की दलीलों का समर्थन किया.