नौतपा के 9 दिन क्यों बरसती है आग? जानें गर्मी न पड़ी तो कितना नुकसान होगा

आमतौर पर मई का मतलब होता है भीषण गर्मी और लू. हालांकि, इस बार हालात कुछ सामान्य हैं, क्योंकि चक्रवात के कारण देश के कई हिस्सों में बारिश से तापमान सामान्य से कम है. इन सबसे बीच लोगों को अभी नौतपा का डर सता रहा है. नौतपा यानी वे नौ दिन जब सूर्य से धरती पर आग बरसेगी और भीषण गर्मी पड़ेगी. इसे नवताप भी कहा जाता है. आइए जान लेते हैं कि नौतपा में क्यों बरसती है आग? क्या कहता है विज्ञान? देश भर में इस दौरान कौन-कौन सी परंपराएं निभाई जाती हैं और नौतपा में बारिश हो जाए तो क्या होगा?

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ज्योतिष शास्त्र कहता है कि जेठ महीने में सूर्य 15 दिनों के लिए रोहिणी नक्षत्र में रहता है. इसी पखवाड़े के पहले के नौ दिन भीषण गर्मी पड़ती है और ये तपते हैं. इसीलिए इन नौ दिनों को नौतपा कहा जाता है. आमतौर पर यह मई के अंत से जून के पहले हफ्ते में पड़ता है. पिछले साल की तरह इस साल भी 25 मई से इसकी शुरुआत होगी. वास्तव में हिन्दी महीने जेठ के पहले नौ दिन सूर्य और पृथ्वी सबसे करीब होते हैं. ऐसे में सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी के कई हिस्से पर पड़ती हैं. इससे काफी गर्मी पड़ती है.

खगोलीय दृष्टि से इस साल 25 मई (2025) को सुबह 3:27 बजे सूर्य का रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश होगा. इसके बाद सूरज की किरणें सीधी धरती पर पड़ने लगेंगी. वैसे तो सूर्य 8 जून 2025 तक इसी नक्षत्र में रहेगा, लेकिन इसके शुरुआती नौ दिन किरणें सीधी धरती पर पड़ने के कारण सबसे अधिक गर्मी होगी.

आखिर नौ दिन ही भीषण गर्मी क्यों

वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह से घड़ी की सुइयां सुबह, दोपहर और शाम के वक्त का अहसास कराती हैं, उसी तरह से नक्षत्रों की आकाशीय घड़ी भी है. इस घड़ी के अनुसार सूरज रोहिणी नक्षत्र के सामने आता है. इससे खास कर मध्य भारत में भीषण गर्मी पड़ती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि वास्तव में धरती पर इस बढ़ते तापमान का रोहिणी नक्षत्र से कोई मतलब नहीं होता है.

हकीकत यह है कि सूर्य की परिक्रमा करते हुए पृथ्वी 365 दिन बाद ऐसी स्थिति में आती है, जब सूर्य के पीछे वृषभ तारामंडल का तारा रोहिणी आ जाता है. यह वही स्थिति होती है, जब सूरज और धरती करीब होते हैं. यह स्थिति नौ दिन रहती है, जिससे खूब गर्मी होती है. वर्तमान हालात में यह स्थिति हर साल 25 मई को बनती है.

मीडिया रिपोर्ट्स में विशेषज्ञों के हवाले से यह भी कहा गया है कि साल 1000 में सूर्य और रोहिणी ऐसी स्थिति में 11 मई को आते थे और नौ दिन गर्मी पड़ती थी. तभी शायद नौ दिनों तक पड़ने वाली प्रचंड गर्मी को यह नाम नौतपा दिया गया होगा.

खेती के लिए होता है आवश्यक

नौतपा के बारे में भारतीय परंपरा की एक कहावत है,

दोएमूसा, दोएकातरा, दोए तिड्डी, दोएताव। दोयांरा बादी जळ हरै, दोए बिसर, दोए बाव।।

यानी नौतपा के पहले दो दिन अगर लू न चली तो चूहे बढ़ जाएंगे. इसके अगले दो दिन भी लू न चली तो फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट यानी, तीसरे दिन से और दो दिन लू नहीं चली तो टिड्डियों के अंडे खत्म नहीं होंगे. चौथे दिन से और दो दिन नहीं तपते तो बुखार के जीवाणु नहीं मरते. इसके बाद भी दो दिन लू नहीं चलने पर विश्वर यानी विषधारी जीव-जन्तु जैसे सांप-बिच्छू कंट्रोल से बाहर हो जाएंगे. आखिरी दो दिन भी लू नहीं चलने पर अधिक आंधियां आएंगी और फसलों को चौपट कर देंगी. यानी भारतीय परंपरा में अगर नौतपा का महत्व है तो विज्ञान में भी कहीं न कहीं नौतपा का अपना महत्व है.

बारिश से होगा नुकसान

दरअसल, खेती के लिए नौतपा की भीषण गर्मी फायदेमंद होती है. बताया जाता है कि इस दौरान सूरज जितना प्रचंड आग बरसाएगा और लू चलेगी, बारिश उतनी ही ज्यादा अच्छा होगी. इससे किसानों के गर्मी में सूखे खेतों को अच्छी-खासी नमी मिलेगी. जैसा कि हमने ऊपर कहावत में देखा इस भीषण गर्मी के कारण फसलों को हानि पहुंचाने वाले कीट खत्म होंगे तो जहरीले जीव-जन्तुओं से भी निजात मिलेगी. इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि यही समय खेतों में रह कर नुकसान पहुंचाने वाले चूहों, कीटों और जहरीले जीवों के प्रजनन का होता है. भीषण गर्मी में अंडे खुद ही नष्ट हो जाते हैं और किसानों को फसल बचाने के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता. अब अगर नौतपा के दौरान अगर गर्मी न पड़े तो आगे बारिश प्रभावित हो सकती है. इस दौरान अगर बारिश भी हो जाती है तो आगे बारिश के मौसम में पानी कम बरसने की आशंका पैदा हो जाती है. फिर खेतों से कीट-पतंगे, जहरीले जीव और चूहों आदि का खात्मा भी नहीं होगा.

नौतपा में ठंडी चीजों के दान की परंपरा

अपने देश में नौतपा के दौरान ठंडी चीजों के दान की परंपरा रही है. मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि गरुड़, पद्म और स्कंद पुराण में भी इस दौरान कई चीजें दान करना शुभ माना गया है. वास्तव में इस दौरान जिन चीजों के दान की परंपरा है, वे सब गर्मी से बचाने के लिए होती हैं. इसका उद्देश्य यह है कि राह चलते या फिर अभावग्रस्त लोगों को ऐसी भीषण गर्मी से राहत मिल सके. इसीलिए लोगों को शीतल चीजें इस दौरान दान की जाती हैं. इनमें पानी का घड़ा, सत्तू, पंखा, छाता, आम, नारियल, सफेद कपड़ों का दान अहम है.

भीषण गर्मी में जल दान भी शुभ माना जाता है. भीषण गर्मी के इन दिनों में प्यास ज्यादा लगती है. इसलिए जगह-जगह प्याऊ आदि लगाकर पानी पिलाने की व्यवस्था की जाती है. कोई अजनबी भी अगर दरवाजा खटखटा कर पानी मांगता है, तो उसे अवश्य देना चाहिए.

ये काम न करने की परंपरा

नौतपा के दौरान निर्माण और खुदाई के काम वर्जित होते हैं. मान्यता है कि इससे वास्तु दोष पैदा होता है. विवाह-सगाई, मुंडन आदि मंगल कार्य से भी मना किया जाता है. इस दौरान लंबी और ज्यादा यात्राओं से मनाही होती है, खासकर बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं को यात्रा से बचने की परंपरा रही है. मांस-मदिरा और मसालेदार खाने से बचने की सलाह दी जाती है. क्रोध और विवाद से बचने के लिए भी कहा जाता है. वास्तव में इनका वैज्ञानिक महत्व भी है. भीषण गर्मी के दौरान ये सारे काम करने से लोग लू आदि की चपेट में आ सकते हैं. ज्यादा गर्मी का मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है. इसलिए इस दौरान तप-साधना की बात कही जाती है, जिससे लोगों को बाहर कम से कम निकलना पड़े और गर्मी से बचाव हो.

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