2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद से भारत-चीन संबंध तनावपूर्ण हैं. विपक्ष का आरोप रहा है कि चीन ने लद्दाख में 1,000 वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा किया है और पैंगोंग झील के पास बंकर बनाए हैं. 21 दौर की सैन्य वार्ता के बावजूद 2020 के बाद भी कोई महत्वपूर्ण प्रगति नजर नहीं आती है. शायद यही कारण रहा है कि भारत ने खुलकर चीन से आने वाले सामान, कई एप्लिकेशन पर प्रतिबंध लगाए. ऑपरेशन सिंदूर के बाद क्या भारत ने चाइनीज सामानों के बहिष्कार का पार्ट-2 शुरू करने वाली है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज गुजरात में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की बात की. इसमें उन्होंने देशवासियों से स्वदेशी सामान अपनाने और विदेशी वस्तुओं का उपयोग कम करने की अपील की. इसका उद्देश्य भारत को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना और 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करना है.
पीएम मोदी ने जिस तरह विदेशी सामानों के बहिष्कार की बात की है उसका सीधा संबंध चीन से ही है. क्योंकि भारतीय बाजारों में चाइनीज सामान का पिछले 2 दशकों से अंबार लगा हुआ है. मोदी जिस तरह से अपनी गांधीनगर की स्पीच में पिचकारी से लेकर भगवान गणेश तक का नाम लेते हैं उससे साफ जाहिर हो जाता है कि उनका इशारा किस देश की ओर है. गलवान संघर्ष के बाद जो बहिष्कार शुरू हुआ था उसे एक बार फिर शुरू करने की जरूरत है. आइये देखते हैं कि क्यों भारत के लिए जरूरी हो गया है चीन के सामानों का बहिष्कार किया जाये.
चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश को भारत के खिलाफ रणनीतिक रूप से शह देने के लिए आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक तरीकों का उपयोग कर रहा है, जिसका मकसद भारत को क्षेत्रीय स्तर पर कमजोर करना और दक्षिण एशिया में अपना प्रभाव बढ़ाना है. चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत पाकिस्तान और बांग्लादेश में भारी निवेश किया है. पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के जरिए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर अरबों डॉलर खर्च किए गए. यही नहीं अब चीन की प्लानिंग सीपीईसी को अफगानिस्तान तक ले जाने की है.
चीन, पाकिस्तान को हथियारों और तकनीक की आपूर्ति करता है, जैसे PL-15 मिसाइल और J-10C फाइटर जेट. ऑपरेशन सिंदूर (मई 2025) के दौरान इन हथियारों का उपयोग भारत के खिलाफ हुआ, हालांकि भारतीय सेना ने इन्हें नाकाम कर दिया. चीन ने बांग्लादेश को भी सैन्य सहायता दी, जिससे वह भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र, खासकर चिकन नेक के पास सैन्य अड्डे बनाने की योजना बना रहा है.
पहलगाम हमले (अप्रैल 2025) के बाद चीन ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया, भारत की सैन्य कार्रवाइयों को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए संयम बरतने की अपील की. बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद चीन ने नई सरकार के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया, जिससे भारत-विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा मिला है.
चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति के तहत वह बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर में प्रभाव बढ़ाने के लिए बांग्लादेश और पाकिस्तान का उपयोग कर रहा है. बांग्लादेश में चीनी जासूसी जहाज दा यांग हाओ की मौजूदगी और CPEC के तहत ग्वादर बंदरगाह का विकास भारत को घेरने की रणनीति का हिस्सा है.
आर्थिक दबाव भी कम नहीं है
2024 में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 48.5 बिलियन डॉलर था. भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (20%), फार्मास्यूटिकल्स (70% API), और ऑटोमोबाइल पार्ट्स (24%) के लिए चीन पर निर्भर है. यदि बहिष्कार की अपील सही तरीके से काम करती है तो इससे व्यापार घाटे तो कम होगा ही मेक इन इंडिया को भी बढ़ावा मिल सकता है.
PLI स्कीम के तहत भारत ने iPhone उत्पादन को वैश्विक हिस्सेदारी का 14-15% तक बढ़ाया. बहिष्कार की अपील इस आत्मनिर्भरता को और तेज करने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में चीन की जगह लेने की कोशिश हो सकती है. भारत में Apple और Tesla जैसे ब्रांड में निवेश कर रहे हैं. बहिष्कार की अपील वैश्विक कंपनियों को यह संदेश दे सकती है कि भारत एक विश्वसनीय विकल्प है.
क्या इसे चीन पर स्ट्राइक कह सकते हैं?
वित्त वर्ष 2023-24 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 118.4 अरब डॉलर था, जिसमें भारत ने 101.75 अरब डॉलर का आयात किया और केवल 16.66 अरब डॉलर का निर्यात किया, जिससे व्यापार घाटा 85.09 अरब डॉलर रहा. यदि भारत चीनी सामानों का पूर्ण बहिष्कार करता है, तो चीन को इस आयात राशि (101.75 अरब डॉलर) का नुकसान हो सकता है. हालांकि, पूर्ण बहिष्कार व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है, क्योंकि भारत कई क्षेत्रों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और कई उद्योगों के लिए कच्चा माल के लिए चीन पर निर्भर है. आंशिक बहिष्कार के परिणाम स्वरूप 2020 में गलवान विवाद के बाद चीनी सामानों की बिक्री में 25-40% की कमी देखी गई थी, जिससे चीन को अनुमानित 40,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.