मिर्जापुर : अब लिवर कैंसर के मरीजों का भारतीय आयुर्वेद पद्धति के गोल्ड नैनोपार्टिकल्स से होगा इलाज, जाने कैसे

 

Advertisement

 

मिर्जापुर : लिवर कैंसर के मरीज़ों का भारतीय आयुर्वेद पद्धति के गोल्ड नैनोपार्टिकल्स से अब इलाज होगा. ऐसा मिर्जापुर के वैज्ञानिक डॉ. मयंक सिंह ने अमेरिका में किए गए शोध के कारण संभव हो पाया है. संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित ‘नेशनल डेंड्रिमर एंड नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर’ में प्रधान वैज्ञानिक व निदेशक के पद पर कार्य करते हुए वैज्ञानिक डॉ मयंक सिंह ने अपने टीम के साथ मिलकर यह उपलब्धि हासिल की है,जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता भी प्रदान हो चुका है.

लिवर कैंसर के मरीज़ों का भारतीय आयुर्वेद पद्धति के गोल्ड नैनोपार्टिकल्स से अब इलाज होगा.लिवर कैंसर से जूझ रहे लोगों के लिए वरदान साबित होगा. मिर्जापुर के चुनार तहसील क्षेत्र के बगही गांव के रहने वाले वैज्ञानिक डॉ० मयंक सिंह ने अमेरिका के नेशनल डेंड्रिमर एंड नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर से बताया कि वह अपनी टीम के साथ मिलकर एक ऐसी नैनो-औषधीय प्रणाली विकसित की है जो लिवर कैंसर के इलाज को नई दिशा दे सकती है.

 

यह शोध कार्य प्राकृतिक पदार्थ-पेक्टिन के उपयोग से जुड़ा है. पेक्टिन एक घुलनशील फाइबर है, जो आमतौर पर फलों की त्वचा (विशेषकर सेब, नींबू एवं, साइट्रस फल) से प्राप्त किया जाता है और लंबे समय से आयुर्वेद तथा आधुनिक पोषण विज्ञान में पाचन सुधारक, डिटॉक्सीफायर और सूजनरोधी एजेंट के रूप में जाना जाता है.डॉ. मयंक और उनकी टीम ने पेक्टिन का उपयोग कर गोल्ड नैनोपार्टिकल्स तैयार किए, वह भी पूरी तरह प्राकृतिक तरीके से, बिना किसी हानिकारक रसायन के. पेक्टिन केवल एक फाइबर नहीं, बल्कि एक स्मार्ट बायोपॉलिमर है,

 

जिसका लक्षित वितरण तंत्र दवा को विशेष रूप से लिवर तक पहुँचाने में सक्षम बनाता है.यानी दवा सिर्फ वहीं काम करेगी जहां ज़रूरत है और शरीर के बाकी हिस्सों को बिना नुकसान पहुँचाए. इसमें डॉक्सोरुबिसिन जैसी शक्तिशाली कैंसर-रोधी दवा का उपयोग कर पेक्टिन बेस्ड गोल्ड नैनोपार्टिकल्स पर लोड किया गया.

कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों से बचाएगा गोल्ड नैनोपार्टिकल्स

डॉ. मयंक बताते हैं कि हमारी यह दवा प्रणाली पूरी तरह से रसायन-मुक्त, बायोडिग्रेडेबल और ग्रीन नैनोटेक्नोलॉजी के सिद्धांतों पर आधारित है.इस लिए यह कैंसर के रोगियों पर कीमोथेरेपी के दौरान पड़ने वाले दुष्प्रभावों से गोल्ड नैनोपार्टिकल्स बचाएगा.उदाहरण तौर पर, ठीक उसी तरह काम करती है जैसे किसी मरीज के लिए बुलाई गई एंबुलेंस, जो सीधा उस स्थान पर पहुंचती है जहां जरूरत है. इसी तरह, यह पेक्टिन-आधारित गोल्ड नैनोपार्टिकल्स दवा को सीधे लिवर कोशिकाओं तक पहुंचाता है, बिना शरीर के बाकी हिस्सों को प्रभावित किए.

हेपेटाइटिस, फैटी लिवर जैसे अन्य बीमारियों में भी होगा कारगर

डॉ० मयंक ने बताया कि इस प्रणाली ने प्री-क्लिनिकल परीक्षणों में यह सिद्ध किया कि यह सीधे लिवर में पहुंचकर दवा का लक्ष्य निर्धारण करती है, जिससे सामान्य कोशिकाएं सुरक्षित रहती हैं और साइड इफेक्ट्स कम होते हैं यह तकनीक आगे चलकर हेपेटाइटिस,फैटी लिवर, लिवर फाइब्रोसिस और अन्य यकृत रोगों के इलाज में भी उपयोगी साबित होगा. हमारी शोध टीम अब इन-विवो बायोडिस्ट्रिब्यूशन की दिशा में आगे बढ़ रही है.

शोध को मिली अंतराष्ट्रीय मान्यता

डॉ० मयंक और उनकी टीम के द्वारा किए गए इस शोध को अंतराष्ट्रीय मान्यता भी प्रदान हो चुका है,जो एल्सेवियर नीदरलैंड प्रकाशन समूह द्वारा अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘ड्रग डिलीवरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ में प्रकाशन के लिए औषधि वितरण फार्मास्युटिकल तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी पत्रिका में 28 मई 2025 को स्वीकार कर लिया गया है, जो इसकी वैज्ञानिक गुणवत्ता और वैश्विक मान्यता का प्रमाण हैं.

शोधकार्य में इन युवा शोधार्थियों की रही सक्रिय भागीदारी

इस शोध में चार युवा शोधार्थियों में
सोफिया शुल्ते, रोहित कुमार, शिल्पा कुमार और स्वाती सिंह ने सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभाया है.शोध को उसकी अंतिम छोर तक पहुंचाने में अपना योगदान दिया है

अमेरिका में विशेष अनुसंधान कार्यक्रम के अंतर्गत किए शोध

यह शोध कार्य संयुक्त रूप से दो प्रमुख अनुसंधान संस्थानों में सम्पन्न किया गया-एक ओर डॉ. मयंक सिंह के नेतृत्व में “मिशिगन स्थित-नेशनल डेंड्रिमर एंड नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर” और दूसरी ओर डॉ. अभय चौहान के पर्यवेक्षण में मिलवॉकी स्थित-मेडिकल कॉलेज ऑफ विस्कॉन्सिन में हुआ.यह शोध अमेरिका द्वारा एक खास कार्यक्रम के अंतर्गत किया गया, जिसे क्लीनिकल एंड ट्रांसलेशनल साइंस इंस्टीट्यूट (सी.टी.एस.आई.) नामक संस्थान द्वारा चलाया जाता है.जिसमें हर साल अमेरिका के अलग-अलग समुदायों से चुने गए होनहार विद्यार्थियों को वैज्ञानिक रिसर्च में काम करने का मौका दिया जाता है.

भारतीय आयुर्वेद और नैनोटेक्नोलॉजी विज्ञान

फोन पर बात करते हुए वैज्ञानिक डॉ. मयंक सिंह बताया कि यह शोध कार्य भारत की आयुर्वेद परंपरा से प्रेरित है.प्राचीन भारत में सोना, तांबा और लोहा जैसी धातुओं को भस्म रूप में औषधि की तरह प्रयोग किया जाता था. “आज विज्ञान यह सिद्ध कर रहा है कि ये भस्में वस्तुतः नैनोपार्टिकल्स ही हैं-यानी भारत हजारों साल पहले से प्राकृतिक नैनोमेडिसिन का उपयोग करता रहा है.उनका मानना है कि आयुर्वेदिक भस्म और नैनोपार्टिकल्स दोनों ही भारत की पारंपरिक चिकित्सा और आधुनिक विज्ञान के संगम हैं.

डॉ. मयंक सिंह वर्तमान में अमेरिका में “सेंट्रल मिशिगन यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन” के ग्रेजुएट फैकल्टी एवं एडजंक्ट प्रोफेसर और “विश्व स्वास्थ्य संगठन” के सलाहकार एवं लंदन की रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री के “चार्टर्ड साइंटिस्ट” हैं.हाल ही में उन्हें “हूज़ हू इन अमेरिका” डायरेक्टरी में शामिल किया गया है.

Advertisements