सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में अग्रिम जमानत बिना सोच-विचार के नहीं दी जानी चाहिए. जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की तीन सदस्यीय पीठ ने हत्या के एक मामले में चार आरोपियों को अग्रिम जमानत दिए जाने के आदेश को खारिज करते हुए ये टिप्पणी की.पीठ ने अपने आदेश में कहा, पटना उच्च न्यायालय के आदेश में, आईपीसी की धारा 302, 307 के तहत गंभीर अपराध से जुड़े मामले में अग्रिम जमानत देने का कोई आधार नहीं बताया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि ये समझ से परे है कि आदेश क्यों दिया गया. गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में, इस तरह से बिना सोच-विचार किये अग्रिम जमानत देना उचित नहीं है और इसे रद्द किया जाना चाहिए. एफआईआर और दूसरी चीजों को सरसरी तौर पर पढ़ने पर अदालत ने पाया कि अपील करने वाले के पिता पर हमला किया गया और उसकी हत्या अपील करने वाले की मौजूदगी में की गई. ऐसे में, अदालत ने कुछ गंभीर बातें की.
जानें क्या था ये पूरा मामला
ये आदेश मृतक के बेटे की ओर से दायर याचिका पर आया है, जिसमें अग्रिम जमानत देने के आदेश को चुनौती दी गई थी.याचिकाकर्ता के पिता पर 2023 में पड़ोसियों के बीच विवाद होने के दौरान सरिया और लाठियों से हमला किया गया था. सिर में चोट लगने के कारण उसी दिन उनकी मृत्यु हो गई और अपील करने वाले के बयान के आधार पर सात आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई.
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि ये घटना एक रास्ते को रोकने से जुड़े विवाद से उपजी है. जैसा कि एफआईआर में भी कहा गया है, आरोपियों की अहम भूमिकाएं इस बात का संकेत देती हैं कि पीड़ित (जिसकी बाद में मृत्यु हो गई) के अचेत हो जाने के बाद भी उन्होंने हमला जारी रखा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालय मामले में आरोपों की गंभीरता और प्रकृति को समझने में साफ तौर पर नाकाम रहा. इसलिए, आरोपी को आठ सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है.