छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने गैंगरेप और 3 हत्या के मामले में 5 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। हाईकोर्ट का कहना है कि, भले ही यह केस समाज को झकझोरने वाला है। फिर भी तथ्यों और परिस्थितियों में आरोपियों को मृत्युदंड की कठोर सजा देना उचित नहीं है
चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि, यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर का मामला नहीं है। जिसमें मृत्युदंड की कठोर सजा की पुष्टि की जानी चाहिए। बता दें कि, इससे पहले कोरबा जिला कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी।
यह मामला जनवरी 2021 का है, जब कोरबा जिले में एक 16 साल की पहाड़ी कोरवा जाति की लड़की के साथ गैंगरेप के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी। साथ ही उसके पिता और 4 साल की बच्ची को भी बेरहमी से मार दिया गया था।
हाईकोर्ट ने इस केस को रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस नहीं माना
पति और बच्चियों को ढूंढती रही पत्नी
कोरबा जिले के देवपहरी गांव में एक विशेष जनजाति समुदाय का परिवार रहता था। इस परिवार के धरमू नाम के व्यक्ति ने सतरेंगा गांव के संतराम मंझवार के मवेशियों की देखभाल का काम किया। संतराम ने धरमू को सालाना 8000 रुपये और हर महीने 10 किलो चावल देने का वादा किया था।
एक साल बीत जाने के बाद भी संतराम ने पूरा भुगतान नहीं किया। उसने केवल 600 रुपये और प्रति माह 10 किलो चावल ही दिया। जब धरमू बकाया राशि मांगता, तो संतराम टाल-मटोल करता रहता।
एक दिन धरमू अपनी पत्नी और बच्ची के साथ संतराम के घर हिसाब-किताब करने गया। काफी मिन्नत करने पर संतराम ने उन्हें 600 रुपए नकद और कुछ अनाज देकर टाल दिया। इसके बाद धरमू सतरेंगा के बस स्टैंड की ओर चल दिया।
कुछ समय बाद संतराम अपने साथियों के साथ आया और सबको मोटरसाइकिल से घर छोड़ने की बात कही। उसने धरमू की पत्नी को एक अलग बाइक पर भेज दिया, जबकि धरमू, उनकी नाबालिग बेटी और नातिन को रोक लिया। जब तीनों घर नहीं पहुंचे, तो धरमू की पत्नी उन्हें खोजते हुए संतराम के घर गई, लेकिन कोई को नहीं मिली। अंत में उसने पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई, जिस पर पुलिस ने जांच शुरू कर दी।