नई दिल्ली में जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर लगी आग के बाद स्टोर रूम में मिले लाखों रुपये के जले-अधजले नोटों की जांच कर रही सुप्रीम कोर्ट की समिति ने पहली बार उस रहस्य से पर्दा उठाया है, जिसमें 10 ऐसे चश्मदीदों के नाम सामने आए हैं, जिन्होंने खुद अपनी आंखों से भारी मात्रा में नकदी देखी थी. ये सभी या तो दिल्ली फायर सर्विस (DFS) या दिल्ली पुलिस से जुड़े अधिकारी हैं. समिति ने जस्टिस वर्मा के आचरण को अस्वाभाविक और संदेहास्पद करार दिया है और उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है.
क्या है पूरा मामला?
यह मामला मार्च 2025 में तब सामने आया, जब दिल्ली में जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में अचानक आग लग गई. आग बुझाने पहुंचे दिल्ली फायर सर्विस और पुलिस अधिकारियों ने वहां पर भारी मात्रा में नकदी देखी, जिनमें से कई नोट आधे जले हुए थे. कुछ चश्मदीदों ने बताया कि नकदी का ढेर लगभग 1.5 फीट ऊंचा था और 500 रुपये के नोट चारों ओर बिखरे हुए थे. जांच समिति ने पाया कि उस कमरे तक केवल जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के लोगों की ही पहुंच थी. बाद में वह कमरा साफ कर दिया गया और वहां से सभी नोट ‘गायब’ हो गए.
स्टोर रूम में नकदी देखने वाले 10 चश्मदीद कौन हैं?
1. अंकित सहवाग (फायर ऑफिसर, DFS): टॉर्च की रोशनी में उन्होंने स्टोर रूम में आधे जले हुए ₹500 के नोटों का ढेर देखा. पानी की वजह से नोट भीग चुके थे.
2. प्रदीप कुमार (फायर ऑफिसर, DFS): स्टोर रूम में घुसते ही उनके पैर में कुछ लगा. झुककर देखा तो यह ₹500 के नोटों का ढेर था. उन्होंने बाहर खड़े सहयोगियों को जानकारी दी.
3. मनोज मेहलावत (स्टेशन ऑफिसर, DFS): उन्होंने घटनास्थल की तस्वीरें लीं. आग बुझाने के बाद उन्होंने खुद अधजली नकदी देखी. यही वो अधिकारी हैं, जिनकी आवाज वीडियो में ‘महात्मा गांधी में आग लग रही है भाई’ कहते हुए सुनी गई.
4. भंवर सिंह (ड्राइवर, DFS): 20 साल के फायर सर्विस करियर में पहली बार उन्होंने इतने बड़े पैमाने पर नकदी देखी. नजारा देखकर वे हैरान रह गए.
5. प्रविंद्र मलिक (फायर ऑफिसर, DFS): उन्होंने देखा कि प्लास्टिक बैग में भरी हुई नकदी आग में जल चुकी थी. लिकर कैबिनेट के कारण आग और भड़क गई थी.
6. सुमन कुमार (असिस्टेंट डिविजनल ऑफिसर, DFS): उन्होंने वरिष्ठ अधिकारी को नकदी मिलने की सूचना दी, लेकिन उन्हें ऊपर से आदेश मिला कि बड़े लोग हैं, आगे कार्रवाई मत करो.
7. राजेश कुमार (तुगलक रोड थाना, दिल्ली पुलिस): आग बुझने के बाद उन्होंने खुद अधजली नकदी देखी और वहां लोगों को वीडियो बनाते हुए देखा.
8. सुनील कुमार (इंचार्ज, ICPCR): टॉर्च से स्टोर रूम में झांक कर उन्होंने जली-अधजली नकदी देखी और तीन वीडियो बनाए. वायरल वीडियो उन्हीं में से एक नहीं था.
9. रूप चंद (हेड कांस्टेबल, तुगलक रोड थाना): उन्होंने SHO के निर्देश पर मोबाइल से पूरी घटना रिकॉर्ड की. उन्होंने देखा कि नोट स्टोर रूम के दरवाजे से लेकर पीछे की दीवार तक फैले हुए थे.
10. उमेश मलिक (SHO, तुगलक रोड थाना): उन्होंने 1.5 फीट ऊंचे जले हुए 500 रुपये के नोटों के ढेर को देखा. कुछ नोट गड्डियों में बंधे थे तो कुछ पानी में बिखर चुके थे.
वायरल वीडियो में कौन-कौन?
वीडियो शूट किया: रूप चंद, हेड कॉन्स्टेबल, तुगलक रोड थाना
वीडियो में दिखे: प्रदीप कुमार, फायर ऑफिसर (हेलमेट पहने आग बुझाते हुए)
वीडियो में आवाज आई: मनोज मेहलावत, स्टेशन ऑफिसर (नोटों में आग लग रही है भाई)
जस्टिस वर्मा के खिलाफ क्या कहा जांच समिति ने?
जस्टिस वर्मा ने कभी भी पुलिस या उच्च न्यायिक अधिकारियों को नकदी मिलने की जानकारी नहीं दी.
जज का दावा कि उन्हें नकदी की जानकारी नहीं थी, ‘अविश्वसनीय’ बताया गया.
यह भी कहा गया कि अगर ये कोई साजिश थी तो उन्होंने अब तक कोई शिकायत क्यों नहीं की?
समिति ने यह भी संकेत दिया कि जस्टिस वर्मा के निजी सचिव राजिंदर सिंह कार्की और उनकी बेटी दिया वर्मा ने साक्ष्य मिटाने या सफाई में भूमिका निभाई हो सकती है.
स्टोर रूम की पहुंच सिर्फ परिवार के पास थी, बाद में वहां से नकदी ‘गायब’ हो गई.
जांच पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक, इतने सारे स्वतंत्र गवाहों की मौजूदगी और घटनास्थल की तस्वीरें व वीडियो किसी भी तरह की साजिश की थ्योरी को खारिज करती हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक आंतरिक जांच समिति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले में बड़ा खुलासा किया है.
जांच समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि जज के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर अनबर्न्ट और आधी जली हुई नकदी मिली, जिसे देखकर कई गवाह ‘हैरान’ रह गए. इसके बावजूद जस्टिस वर्मा ने न तो पुलिस में कोई शिकायत की, न ही इस घटना की जानकारी उच्च न्यायिक अधिकारियों को दी, जो उनके ‘अप्राकृतिक व्यवहार’ को दर्शाता है. जांच पैनल ने उनके आचरण को संदिग्ध मानते हुए उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की है.
जांच समिति ने 55 गवाहों के बयान दर्ज किए, जिनमें जस्टिस वर्मा की बेटी दिया वर्मा भी शामिल थीं, लेकिन सबसे अहम बयान उन 10 अधिकारियों के थे, जो मौके पर सबसे पहले पहुंचे थे और नकदी को अपनी आंखों से देखा.
रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस वर्मा के निजी सचिव राजेंद्र सिंह कार्की ने कथित तौर पर अग्निशमन विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिया कि रिपोर्ट में नोटों का कोई जिक्र न हो. एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी फायर टीम को ‘ऊपर से आदेश’ का हवाला देकर मामले को आगे न बढ़ाने को कहा. हालांकि जज के घरेलू कर्मचारियों ने नोट देखने से इनकार किया, लेकिन समिति ने पुलिस और फायर कर्मियों की स्वतंत्र गवाही को अधिक विश्वसनीय माना.
‘षड्यंत्र’ का दावा खारिज
जस्टिस वर्मा ने पूरे मामले को अपनी छवि धूमिल करने की साजिश करार दिया था, मगर समिति ने इसे भी खारिज करते हुए कहा कि नकदी को कई स्वतंत्र गवाहों ने मौके पर देखा और रिकॉर्ड किया है. इसे प्लांट किया गया कहना अविश्वसनीय है. रिपोर्ट में जज की बेटी दिया वर्मा और उनके सचिव की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं कि क्या उन्होंने सबूत मिटाने या सफाई करने में मदद की.
अब तक कोई इस्तीफा नहीं, ना ही VRS
इस पूरे मामले के सामने आने के बाद जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया, लेकिन उन्हें कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है. वे न तो इस्तीफा दे रहे हैं और न ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) के लिए तैयार हैं. उनका कहना है कि पूरी जांच प्रक्रिया ‘अन्यायपूर्ण’ और ‘पूर्वाग्रही’ रही है.