केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आज मुंबई दौरे पर हैं. जहां, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के उपलक्ष्य में NAFED द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित किए. शाह ने कहा कि हम सब जानते हैं कि पूरी दुनिया के लिए सहकारिता एक आर्थिक व्यवस्था हो सकती है, परंतु भारत के लिए ये एक पारंपरिक जीवन का दर्शन है. साथ में आना, साथ में सोचना और साथ में काम करना, सुख और दुख दोनों में साथ देना, ये भारत के जीवन दर्शन की आत्मा है.
शाह ने कहा कि लगभग सवा सौ साल पुराने सहकारिता आंदोलन में इस देश के गरीब, किसान और महिलाओं के जीवन का एक प्रकार से सहारा बनने का सहकारिता आंदोलन ने किया है. शाह ने आगे कहा कि सहकारी मॉडल के आधार पर राष्ट्रीय टैक्सी नामक एक नई पहल शुरू की जाएगी. इस व्यवस्था में टैक्सी चालक न केवल सेवा से जुड़े होंगे, बल्कि वे भारत सहकारी टैक्सी के मालिक भी होंगे. लाभ सीधे उनके बैंक खातों में जाएगा.
गृहमंत्री ने आगे कहा कि मोदी जी ने हमारे अन्नदाताओं को समृद्ध करने और एक समृद्ध इको सिस्टम में रहने के लिए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया. इसकी मांग कितने सालों से की जा रही थी, लेकिन किसी ने पूरी नहीं की. कहते थे सहकारिता राज्य का विषय है, केंद्र इसमें क्या करेगा? अब सहकारिता मंत्रालय ने ढेर सारे इनिशेटिव लिए.
उन्होंने कहा कि कर्नाटक, गोवा जैसे राज्यों में सहकारिता आंदोलन फला फूला. हमने सबसे पहला काम किया कि राष्ट्रीय स्तर पर इसका डेटा इकट्ठा किया. आज सहकारिता मंत्रालय के पास गांवों तक का डेटा है. हम देशभर में पैक्स बनाने जा रहे हैं. हर गांव के भीतर कोऑपरेटिव सोसाइटियां होंगी. ये सोसाइटियां मल्टी पर्पज काम करेंगी.
त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी बनाने का ऐलान
शाह ने कहा कि सहकारिता मंत्रालय ने त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी बनाने का भी फैसला किया है. भारत सरकार ने बिल भी पारित कर दिया है. अगस्त की शुरुआत में इसकी आधारशीला रखी जाएगी. हमने तकनीक के सुधार के लिए भी ढेर सारा काम किया है. सबसे बड़ा काम किया है आयकर कानून के भीतर कॉर्पोरेट और कोआपरेटिव को समान स्तर पर लाने का काम किया है, जो सालों पुरानी मांग थी. उत्पादन में शामिल लोगों के लिए टैक्स की दर में कटौती की गई है. महाराष्ट्र में गन्ना मिलों के लिए टैक्स का विवाद था, यह करीब 15 हजार करोड़ का था