उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद शुक्रवार को बताया कि एक आरोपी को समय पर रिहा न किए जाने के कारण उसे पांच लाख रुपये का मुआवजा दे दिया गया है. यह मामला राज्य के धर्मांतरण रोधी कानून के तहत दर्ज एक केस से जुड़ा है. इसमें आरोपी को 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी. इसके बावजूद उसे करीब एक महीने बाद 24 जून को गाजियाबाद जिला जेल से रिहा किया गया.
रिहाई में हुई देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने 25 जून को उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी. आदेश दिया था कि आरोपी को 5 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए. साथ ही राज्य सरकार से आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट मांगी गई थी. शुक्रवार को जस्टिस के. वी. विश्वनाथन और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ को राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने बताया कि मुआवजा राशि दे दी गई है. आरोपी के वकील ने भी इसकी पुष्टि की.
अदालत ने 27 मई को रिहाई का आदेश दिया था
दरअसल, जमानत मिलने के बाद गाजियाबाद की निचली अदालत ने 27 मई को आरोपी की रिहाई का आदेश दिया था. मगर, रिहाई में 28 दिन की देरी हुई. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि व्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान के तहत एक अत्यंत मूल्यवान अधिकार है. कोर्ट ने यह भी कहा कि एक मामूली तकनीकी कारण के चलते किसी की आजादी छिन जाना गंभीर चिंता का विषय है.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के आदेश भी दिए
सुप्रीम कोर्ट ने गाजियाबाद के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को इस मामले की जांच के आदेश भी दिए हैं. राज्य सरकार का कहना है कि निचली अदालत के आदेश में उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 5(1) का साफ जिक्र नहीं था. इसी वजह से जेल अधिकारियों ने 28 मई को आदेश में सुधार के लिए याचिका दायर की, जो समय पर निपटाई नहीं जा सकी. इसी कारण रिहाई में देरी हुई.