राजस्थान की चर्चित योजना ‘कालीबाई भील मेधावी छात्रा स्कूटी योजना’ का हश्र देख आमजन यह सवाल पूछने लगे हैं कि आखिर योजनाएं कागज़ पर बनती हैं या जमीन पर उतरने के लिए?पाली जिले के बांगड़ कॉलेज में 2022 में आई 160 स्कूटियों में से आज तक 113 स्कूटी छात्राओं को नहीं दी गईं। हालत ये है कि ये स्कूटी अब खुद मदद के लिए तरस रही हैं—बैटरियां खराब, इंश्योरेंस एक्सपायर, पुर्जों में जंग और सबसे बड़ी बात – उसे लेने वाली छात्राएं अब कॉलेज ही छोड़ चुकी हैं।
बांगड़ कॉलेज की पूर्व छात्राओं ने सवाल उठाया कि
“हमारे पास स्कूटी लेने की पात्रता थी, सब डॉक्यूमेंट समय पर जमा किए… फिर क्यों 3 साल तक हम सिर्फ इंतज़ार करते रहे?”
कई छात्राओं का कहना है कि अगर स्कूटी समय पर मिलती तो रोज़ाना कॉलेज आने-जाने में मदद मिलती। अब पढ़ाई खत्म हो गई है और स्कूटी जंग खाकर कबाड़ बन चुकी है।कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. महेन्द्र सिंह राजपुरोहित का कहना है कि स्कूटी खराब नहीं हुई हैं और वे सुरक्षित रखी गई हैं।उन्होंने यह भी दावा किया कि अब बची हुई 113 स्कूटी के वितरण के आदेश मिल चुके हैं और जल्द ही वितरण प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
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स्कूटी योजना का उद्देश्य ग्रामीण व शैक्षिक रूप से पिछड़ी छात्राओं को प्रोत्साहन देना था।
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लेकिन 3 साल तक वितरण ना होना, ये दिखाता है कि नीतियां केवल घोषणाओं तक सीमित रह गई हैं।
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इंश्योरेंस की अवधि खत्म, स्कूटियों की बैटरी खराब और छात्रों की पात्रता अवधि समाप्त – ऐसे में इस योजना की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
इस घटना ने न केवल ब्यूरोक्रेसी और कॉलेज प्रशासन की सुस्ती को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि कैसे सरकारी योजनाएं केवल कागज़ों पर ही क्रियान्वित हो रही हैं।योजनाओं का लाभ अगर समय पर नहीं मिला, तो वो लाभ नहीं बोझ बन जाता है। यही कालीबाई भील योजना के स्कूटी वितरण में भी देखने को मिल रहा है।