संसद में बढ़े बिहार-यूपी जैसे राज्यों का प्रतिनिधित्व… RLM चीफ उपेंद्र कुशवाहा की बड़ी मांग

पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RML) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार के गया जी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए एक बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि बिहार और यूपी जैसे जनसंख्या वाले राज्यों का संसद में प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है और इसे ठीक करने के लिए परिसीमन यानी सीटों का फिर से विभाजन जरूरी है.

Advertisement

उन्होंने दक्षिणी राज्यों की जनसंख्या वृद्धि दर धीमी होने वाले तर्क को भ्रामक बताया. कुशवाहा ने कहा कि असल में 1881 से 1947 तक दक्षिण में विकास दर अधिक थी क्योंकि उत्तर भारत अकाल और महामारी से अधिक प्रभावित रहा. कुशवाहा ने कहा कि अगर हम आंकड़ों की बात करें तो दक्षिणी राज्यों में लगभग 21 लाख आबादी पर 1 लोकसभा सीट होती है, जबकि बिहार और यूपी में यह संख्या लगभग 31 लाख प्रति सीट है, जो बाबा साहेब आंबेडकर के ‘एक वोट, एक व्यक्ति’ के सिद्धांत का उल्लंघन है.

बिहार को 20 सीटों का नुकसान

उन्होंने यह भी बताया कि आपातकाल (1976) के दौरान परिसीमन की प्रक्रिया को रोक दिया गया और बाद में इसे 2026 तक स्थगित किया गया, जिससे बिहार को 20 सीटों का नुकसान हुआ. कुशवाहा ने कहा कि अगर पारंपरिक प्रक्रिया जारी रहती तो बिहार की लोकसभा सीटें वर्तमान 40 की बजाय कम‑से‑कम 60 होतीं. कुशवाहा ने यह भी कहा कि दक्षिणी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि धीमी हुई है क्योंकि उन्होंने पहले शिक्षा में सुधार पर ध्यान दिया. वैसे ही शिक्षा का प्रसार अब हिंदी पट्टी में भी हो रहा है और जब ऐसा होगा, तो वहां भी वृद्धि नियंत्रित होगी.

उन्होंने कहा कि मगर जब तक ऐसा नहीं होता, संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व उनके जनसंख्या के अनुसार होना चाहिए. उन्होंने कांग्रेस और दक्षिणी नेताओं पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे संविधान की इस व्यवस्था को स्थगित कराना चाहते हैं, ताकि उत्तर भारत की राजनीतिक ताकत कम हो जाए. कुशवाहा ने कहा कि न केवल लोकसभा, बल्कि विधानसभा सीटों की संख्या भी जनगणना‑आधारित होनी चाहिए.

Advertisements