भीलवाडा : नेता परेशान, पार्टियां खामोश – परिसीमन की गुत्थी ने मचाया चुनावी बवाल!

भीलवाडा : नगर निकाय परी क्षेत्रों में हाल ही में हुए वार्ड परिसीमन को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है. चर्चा का केंद्र ये बन गया है कि क्या 2019 में हुए परिसीमन को ही आगामी नगर पालिका चुनावों का आधार बनाया जाएगा या हाल ही में हुए नए परिसीमन को मान्यता मिलेगी. इस अनिश्चितता ने कई स्थानीय नेताओं की नींद उड़ा दी है.

 

4 जुलाई को खुलेगा सियासी पिटारा

भीलवाड़ा में चार जुलाई की तारीख को लेकर राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चाएं हैं. माना जा रहा है कि इस दिन स्पष्ट हो जाएगा कि चुनाव किस परिसीमन पर होंगे. अगर 2019 के परिसीमन को ही यथावत रखा गया तो कई स्थानीय नेताओं की रणनीतियां धरी की धरी रह जाएंगी. उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में जातीय और वोट समीकरणों को ध्यान में रखते हुए नई सीमाएं जोड़-तोड़ कर तैयार की थीं, जो नए परिसीमन में प्रभावित हो सकती हैं.

 

जातिगत समीकरणों में बदलाव की आशंका

नए परिसीमन के तहत कई वार्डों की सीमाएं बदली गई हैं, जिससे जातिगत और सामाजिक समीकरणों में बड़ा फेरबदल देखने को मिल सकता है. इससे चुनाव परिणामों में अप्रत्याशित बदलाव की संभावना जताई जा रही है. ऐसे में कई वार्डों में नए चेहरे सामने आ सकते हैं, तो कई स्थापित चेहरों को बड़ा नुकसान भी हो सकता है.

 

मुस्लिम संगठनों ने किया था विरोध

गौरतलब है कि हाल ही में हुए परिसीमन का एकमात्र मुखर विरोध मुस्लिम संगठनों की ओर से सामने आया था. उनका आरोप है कि नए परिसीमन में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों को जानबूझकर विभाजित किया गया है, जिससे राजनीतिक प्रतिनिधित्व कमजोर हो. इस मुद्दे पर अभी तक किसी भी बड़ी राजनीतिक पार्टी ने खुलकर विरोध दर्ज नहीं करवाया है, जिससे समुदाय में रोष की भावना बनी हुई है.

 

राजनीतिक दलों की रणनीति मौन में छिपी

हालांकि अंदरखाने राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी रणनीतियों को लेकर बैठकों का दौर शुरू कर दिया है, लेकिन सार्वजनिक रूप से परिसीमन को लेकर कोई बड़ा बयान नहीं दिया गया है. इससे स्पष्ट है कि सभी दल स्थिति स्पष्ट होने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि उसी अनुसार अपने उम्मीदवारों और प्रचार रणनीति को अंतिम रूप दे सकें. नगर पालिका चुनावों को लेकर परिसीमन एक बड़ा मुद्दा बन चुका है. 4 जुलाई को होने वाला फैसला न सिर्फ राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि कौन-सा नेतृत्व वंचित रहेगा और कौन-सा उभरेगा. फिलहाल सभी की निगाहें इसी दिन पर टिकी हुई हैं, जब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

 

 

 

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