हाईकोर्ट से मिला न्याय:SECL में भूमि-अधिग्रहण के बदले नौकरी में हुआ था फर्जीवाड़ा, बेटे नियुक्ति देने दिया आदेश

SECL में जमीन अधिग्रहण के बदले नौकरी पाने के लिए महिला को 30 साल बाद हाईकोर्ट से न्याय मिला है। जस्टिस संजय के अग्रवाल की सिंगल बेंच ने गैर व्यक्ति को नौकरी देने SECL प्रबंधन के 6 जुलाई 2017 को जारी आदेश को निरस्त कर दिया है।

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साथ ही याचिकाकर्ता महिला के बेटे को नौकरी देने का आदेश भी दिया है। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा है कि सार्वजनिक उपक्रम को निष्पक्षता और सद्भावना से काम करना चाहिए, उसकी गलती की सजा याचिकाकर्ता को नहीं मिलनी चाहिए।

1981 में कोयला खदान के लिए ली गई थी जमीन

कोरबा जिले के दीपका गांव की निर्मला तिवारी की 0.21 एकड़ जमीन 1981 में कोयला खदान के लिए अधिग्रहित की गई थी। बदले में एसईसीएल को पुनर्वास नीति के तहत उन्हें मुआवजा और उनके परिवार के सदस्य को नौकरी देनी थी।

महिला को मुआवजा तो 1985 में दे दिया गया। लेकिन, SECL प्रबंधन ने नौकरी उनके बेटे की जगह एक फर्जी व्यक्ति नंद किशोर जायसवाल को दे दी। नंदकिशोर ने खुद को याचिकाकर्ता का बेटा बताकर नौकरी हासिल कर ली।

धोखाधड़ी की शिकायत पर किया बर्खास्त, बेटे को नहीं दी नौकरी

याचिकाकर्ता महिला ने SECL प्रबंधन को धोखाधड़ी की जानकारी दी। लंबी लड़ाई के बाद SECL ने वर्ष 2016 में नंद किशोर को नौकरी से बर्खास्त तो कर दिया। लेकिन, महिला के बेटे उमेश तिवारी को नियुक्ति नहीं दी।

SECL प्रबंधन ने यह कहते हुए नौकरी देने से इनकार कर दिया कि अधिग्रहण की तारीख पर जमीन याचिकाकर्ता के नाम पर म्यूटेट नहीं थी और उसके बेटे का उस वक्त जन्म नहीं हुआ था।

हाईकोर्ट ने कहा- म्यूटेशन सिर्फ कब्जे का सबूत, स्वामित्व का नहीं

हाईकोर्ट ने SECL इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि म्यूटेशन का रिकॉर्ड सिर्फ कब्जे का सबूत है, स्वामित्व का नहीं। जब एसईसीएल ने जमीन के बदले मुआवजा दिया था, तो यह मान लिया गया था कि याचिकाकर्ता ही जमीन की मालिक है।

साथ ही कहा कि अगर शुरू में गलत व्यक्ति को नियुक्ति दी गई, तो उस गलती को सुधारते समय असली हकदार को उसका हक देना चाहिए था। केवल इस आधार पर कि बेटा अधिग्रहण के समय पैदा नहीं हुआ था, उसका दावा खारिज नहीं किया जा सकता।

गलत व्यक्ति को नौकरी देना अन्याय

हाईकोर्ट ने कहा कि SECL ने न केवल अपने वादे का उल्लंघन किया बल्कि एक गलत व्यक्ति को नौकरी देकर याचिकाकर्ता के साथ अन्याय किया। हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि याचिकाकर्ता के बेटे को 6 जुलाई 2017 से नियुक्ति दी जाए। इसके अलावा सभी लाभ भी उस तारीख से दिया जाए।

संविधान में मिला राज्य का दर्जा, निष्पक्षता की उम्मीद

हाईकोर्ट ने मोहन महतो विरुद्ध सेंट्रल कोल फील्ड लिमिटेड और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड पर नाराजगी जताई थी। कहा था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को राज्य का दर्जा हासिल है। ऐसे में उसे सद्भावना, निष्पक्षता और उचित तरीके से काम करना चाहिए।

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