प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घाना दौरे पर पहुंचे थे. इस दौरान भारत और घाना के बीच चार अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान घाना की संसद को भी संबोधित किया. घाना से त्रिनिदाद और टोबैगो रवाना होने से पहले पीएम मोदी ने घाना के राष्ट्रपति जॉन महामा, उनकी पत्नी और संसद अध्यक्ष को भारत की पारंपरिक कलाकृतियों से जुड़े अनोखे और सुंदर तोहफे दिए हैं. इन खास उपहारों के जरिए पीएम मोदी ने भारतीय कला, कारीगरी और विरासत की झलक प्रस्तुत की है.
बीदरी कलाकृति वाले फूलदान
पीएम मोदी की ओर से घाना के राष्ट्रपति को बारीक बीदरी कलाकृति वाले फूलदान भेंट किए गए हैं. कर्नाटक के बीदर की यह उत्कृष्ट बिदरीवेयर फूलदानों की जोड़ी भारत की प्रसिद्ध धातु कला का अद्वितीय उदाहरण है, जो अपनी काली चमक और सुंदर चांदी की जड़ाई के लिए जानी जाती है. कुशल कारीगरों द्वारा पारंपरिक तकनीक से हस्तनिर्मित, ये फूलदान जस्ता-तांबा मिश्रधातु से बनाए गए हैं. इन पर सुंदर पुष्प आकृतियों की नक्काशी की गई है, जो सौंदर्य और समृद्धि का प्रतीक हैं. इन्हें एक विशेष ऑक्सीकरण प्रक्रिया से तैयार किया जाता है, जो इन्हें इनकी विशिष्ट काली चमक प्रदान करती है.
पारंपरिक शिल्प और आधुनिक रूप का संगम दर्शाते ये फूलदान सौहार्द और एकता का प्रतीक हैं, जो विवाह, वर्षगांठ, त्योहार या कॉर्पोरेट अवसरों पर देने के लिए एक गरिमामयी और अर्थपूर्ण उपहार हैं. यह केवल सजावटी वस्तु नहीं, बल्कि कर्नाटक की समृद्ध शिल्प परंपरा और कालजयी कलात्मकता का प्रतीक भी है.
घाना के राष्ट्रपति की पत्नी को चांदी के तारों से सजा पर्स भेंट किया गया है. ओडिशा के कटक की यह सुंदर सिल्वर फिलिग्री (तारकसी) कला से सुसज्जित पर्स उस प्राचीन हस्तशिल्प का अनमोल उदाहरण है, जिसकी 500 वर्षों से अधिक पुरानी परंपरा है. यह पर्स अत्यंत बारीकी से चांदी की महीन तारों द्वारा तैयार किया गया है, जिसमें नाजुक पुष्प और बेल-बूटों की आकृतियां हैं. हल्के लेकिन मजबूत इस पर्स में पारंपरिकता और शुद्ध कलात्मकता का समन्वय है.
जहां पहले यह कला आभूषणों में प्रयुक्त होती थी, अब यह आधुनिक सामानों जैसे इस पर्स में भी समाहित हो गई है. यह उपहार एक ओर जहां सांस्कृतिक गौरव और स्त्रैण गरिमा को दर्शाता है, वहीं यह ओडिशा की समृद्ध शिल्प विरासत का प्रतीक भी है.
कश्मीरी पश्मीना शॉल
पीएम मोदी की ओर से घाना के उपराष्ट्रपति को कश्मीरी पश्मीना शॉल भेंट दी गई है. कश्मीर की प्रसिद्ध पश्मीना ऊन से बनी यह विलासितापूर्ण शॉल पारंपरिक कला, कोमलता और गरिमा का प्रतीक है. चांगथांगी बकरी की अति महीन ऊन से बनी यह शॉल अपने अद्वितीय नरमपन, हल्केपन और ऊष्मा के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है.
इस पर कश्मीरी परंपरा के अनुसार, हाथ से की गई बारीक कढ़ाई में फूल-पत्तियों और पैस्ले डिज़ाइनों की झलक मिलती है. हर शॉल को बनाने में महीनों का समय लगता है, जिसमें कताई, बुनाई और कढ़ाई सब कुछ हाथों से किया जाता है. यह शॉल न केवल एक उपयोगी वस्त्र है, बल्कि भारत की समृद्ध कपड़ा विरासत और कश्मीरी शिल्प का एक शाश्वत प्रतीक भी है, जो इसे एक सुरुचिपूर्ण और सार्थक उपहार बनाता है.