फकीरे की मड़ैया: दो जिलों की सीमा पर उलझा गांव, 2026 में मिलेगी नई पहचान

इटावा /जसवंतनगर: आगरा और इटावा जिले की सीमा पर बसा फकीरे की मड़ैया गांव अपनी अनोखी प्रशासनिक व्यवस्था के कारण चर्चा में है.इस गांव की दोहरी पहचान इसे एक अनूठा उदाहरण बनाती है, जहां ग्राम प्रधान का चुनाव आगरा जिले की बाह तहसील के तहत होता है, लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनावों में यह इटावा जिले के जसवंतनगर विकास खंड का हिस्सा बन जाता है.

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इस असामान्य व्यवस्था से गांव के करीब 900 मतदाता प्रभावित हैं, जिन्हें प्रशासनिक और राजनैतिक प्रक्रियाओं में दोहरे चक्कर लगाने पड़तेबदला. यह स्थिति न केवल ग्रामीणों के लिए असुविधाजनक है, बल्कि प्रशासनिक उलझनों का भी कारण बनी हुई है.ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और बदलाव

 

 

फकीरे की मड़ैया की स्थापना आजादी के बाद यमुना नदी के किनारे हुई थी। शुरू में यह गांव प्रशासनिक रूप से आगरा जिले की बाह तहसील की ग्राम पंचायत पारना का एक मजरा था। उस समय सभी प्रशासनिक और चुनावी प्रक्रियाएं आगरा जिले के तहत ही संचालित होती थीं.लेकिन 1996 में राजनीतिक समीकरणों के चलते गांव की चुनावी रूपरेखा में बदलाव किया गया.लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए इसे इटावा जिले के जसवंतनगर विकास खंड में शामिल कर लिया गया,

 

जबकि पंचायतीराज व्यवस्था के तहत यह आगरा से ही जुड़ा रहा.इस दोहरी व्यवस्था ने ग्रामीणों के लिए मुश्किलें खड़ी कीं. कद राजस्व संबंधी कार्यों के लिए उन्हें इटावा जाना पड़ता था, जबकि पंचायत से जुड़े विकास कार्यों और प्रधानी के चुनाव के लिए वे आगरा की बाह तहसील पर निर्भर थे।प्रशासनिक सुधार की दिशा में कदम ग्रामीणों की लगातार शिकायतों के बाद शासन ने इस समस्या पर ध्यान दिया.

 

6 नवंबर 2015 को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया गया, जिसके तहत फकीरे की मड़ैया को राजस्व ग्राम के रूप में आगरा से हटाकर इटावा जिले के जसवंतनगर विकास खंड की बाऊथ ग्राम पंचायत में शामिल कर दिया गया.हालांकि, पंचायत चुनाव अभी भी पुरानी व्यवस्था के तहत आगरा से संचालित हो रहे थे, जिसके कारण दोहरी व्यवस्था पूरी तरह खत्म नहीं हुई.

 

2026 में पूर्ण विलय की उम्मीद

अब इस विसंगति को पूरी तरह समाप्त करने की तैयारी है.अधिकारियों के अनुसार, 2026 में होने वाले पंचायत चुनावों में फकीरे की मड़ैया को पूर्ण रूप से इटावा जिले में शामिल कर लिया जाएगा.इस कदम से गांव की दशकों पुरानी दोहरी पहचान समाप्त हो जाएगी.ग्रामीणों को अब एक ही जिले के तहत सभी प्रशासनिक और चुनावी प्रक्रियाओं का लाभ मिलेगा, जिससे उनकी परेशानियां कम होंगी। यह बदलाव न केवल प्रशासनिक सुगमता लाएगा, बल्कि गांव को एक स्थायी और स्पष्ट पहचान भी प्रदान करेगा. ग्रामीण इस बदलाव का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, ताकि उनकी वर्षों पुरानी उलझन का अंत हो सके.

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