दलाई लामा के उत्तराधिकारी (पुनर्जन्म) का मामला फिर से एक बार सुर्खियों में है. तिब्बती बौद्धों की सर्वोच्च धर्मगुरु दलाई लामा ने चीन और अपने अनुयायियों को साफ़ संदेश दिया है कि दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी. धर्मगुरु दलाई के इस बयान के बाद चीन, भारत से लेकर अमेरिका तक हलचल तेज हो गई है. वहीं, तिब्बत के लामाओं के बीच खुशी की लहर दौड़ गई है.
तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख पेन्पा त्सेरिंग ने क्या कहा?
World War 3 will be for language, not land! pic.twitter.com/0LYWoI3K0r
— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रमुख पेन्पा त्सेरिंग ने दलाई लामा के पुनर्जन्म के मामले में हस्तक्षेप करने की कोशिश का सख्त विरोध किया है. उन्होंने चीन के दखलंदाज़ी को बिल्कुल बेमतलब बताया और कहा कि पुनर्जन्म एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है. ऐसे में चीन कैसे तय कर सकता है कि अगला दलाई लामा कहां पैदा होगा. आध्यात्मिक गुरु ख़ुद तय करते हैं कि उन्हें कहां पैदा होना है.
पेन्पा त्सेरिंग का ये बयान धर्मगुरु दलाई लामा के 90वीं वर्षगांठ से पहले आया है. वह धर्मशाला के मैकलियोडगंज से निर्वासित तिब्बती सरकार का नेतृत्व करते हैं.
उन्होंने कहा कि चीन को पहले तिब्बती संस्कृति, बौध धर्म और मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में अध्ययन करने की ज़रूरत है. अगर चीन वाक़ई में पुनर्जन्म के प्रक्रिया पर विश्वास करता है तो उन्हें सबसे पहले अपने नेताओं जैसे माओ ज़ेदोंग, जियांग ज़ेमिन और और के पुनर्जन्म को खोजने की कोशिश करनी चाहिए.
पेन्पा त्सेरिंग बोले – चीन चाहता है कि अगले दलाई लामा चुनने की प्रक्रिया ‘गोल्ड अर्न’ प्रक्रिया के तहत और उनके अनुमति से होना चाहिए. लेकिन चीन की ये प्रक्रिया परंपरा से अलग है. इस प्रक्रिया के तहत 1793 में चिंग राजवंश ने पहली बार तिब्बत पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए शुरू किया था. हालांकि, इससे पहले 8 दलाई लामा इस प्रक्रिया के बिना चुने गए थे. चिंग राजवंश की प्रक्रिया हमारी प्राचीन परंपरा नहीं है.
उन्होंने ये भी साफ़ किया कि धर्मगुरु दलाई लामा के 90वीं वर्षगांठ के मौके पर उत्तराधिकारी का ऐलान नहीं किया जाएगा. ऐसा कई लोगों को गलतफहमी थी कि इस दिन उत्तराधिकारी का ऐलान होगा. लेकिन ऐसा नहीं होगा. धर्मगुरु दलाई लामा ख़ुद बोल चुके हैं कि वह अभी और 20 साल तक जीवित रहेंगे और उचित समय आने पर अपना उत्तराधिकारी से जुड़ी जानकारियां देंगे.
पेन्पा त्सेरिंग ने चीन द्वारा तिब्बत में बौद्ध समुदाय के बीच फूट डालने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि चीन का मकसद कामयाब नहीं होगा और इसका उलटा असर होगा. चीन का जो रवैया हम उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएंगे, ऐसा नहीं चलता रहेगा.
उन्होंने शी जिनपिंग के सरकार पर ताना मारते हुए कहा कि ये देखना दिलचस्प होगा कि दलाई लामा ज्यादा तक जीवित रहते हैं या चीन की कम्युनिस्ट सरकार.
अगले दलाई लामा पर बड़ा ऐलान: चीन को झटका, लोकतांत्रिक देश से होगा चयन!
मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी होगा या नहीं. धर्मशाला से जारी एक वीडियो संदेश के जरिए दलाई लामा ने साफ किया कि गार्डेन पोडरन ट्रस्ट के पास भविष्य के दलाई लामा को पहचानने का पूरा अधिकार होगा. उन्होंने यह भी कहा है कि नए दलाई लामा के चयन में किसी भी दूसरे का कोई भी अधिकार नहीं होगा.
दलाई लामा ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस बार का दलाई लामा किसी लोकतांत्रिक और आजाद देश से चुना जाएगा. इसका मतलब यह हुआ कि दलाई लामा चीन या फिर तिब्बत से नहीं होगा क्योंकि चीन लोकतांत्रिक नहीं है और तिब्बत आजाद नहीं है, इस पर चीन का अधिकार है. चीन इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना चाहता है क्योंकि दलाई लामा तिब्बत के धार्मिक और प्रशासनिक प्रमुख होते हैं.
मौजूदा दलाई लामा 1959 में चीन के कब्जे के बाद भारत आए थे और तब से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित तौर पर रह रहे हैं. चीन को लगता है कि अगर दलाई लामा उसके पक्ष में होगा तो तिब्बत पर शासन करना उसके लिए आसान होगा.
दलाई लामा ने दोहराया है कि ‘गार्डेन फोर्डेन ट्रस्ट के पास पुनर्जन्म को मान्यता देने का एकमात्र अधिकार है. इस मामले में किसी और को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.’ तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा को चुना नहीं बल्कि ढूंढ़ा जाता है. मृत्यु के बाद दलाई लामा नए शरीर में पुनर्जन्म लेते हैं. वरिष्ठ भिक्षु आध्यात्मिक संकेतों का अध्ययन कर बच्चे की तलाश करते हैं, जिसमें सपनों का विश्लेषण, शव की दिशा, दाह संस्कार के धुएं की दिशा शामिल है. पहचान होने पर बच्चे को दलाई लामा की प्रिय वस्तुएं दी जाती हैं और सही चयन करने पर उसे संभावित पुनर्जन्म माना जाता है. चीन तिब्बत में अपने ही पक्ष का कोई दूसरा दलाई लामा बिठाने की कोशिश कर सकता है.
दलाई लामा का पुनर्जन्म: चीन की मंशा क्या?
अब सवाल यह है कि दलाई लामा चीन से बाहर ही पैदा होंगे और उनका पुनर्जन्म इस बार चीन में नहीं होगा. पुनर्जन्म कहां होगा, कैसे तय होगा? क्योंकि कौन कहां पैदा होगा, यह कैसे तय हो सकता है? इस पर यह तर्क दिया जा रहा है कि पहले भी बहुत से दलाई लामा चीन से बाहर पैदा हुए थे.
तीसरे दलाई लामा का जन्म मंगोलिया में हुआ था. छठे दलाई लामा आज के अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में पैदा हुए थे. इसीलिए यह तर्क तो काम नहीं करेगा कि दलाई लामा सिर्फ चीन में ही पैदा हो सकते हैं.
असल में चीन यह चाहता है कि दलाई लामा की परंपरा जारी तो रहे लेकिन चीन का उसमें पूरा अधिकार रहे लाई लामा तिब्बत में अपने आवास पटोला पैलेस में बैठे. चीन मौजूदा दलाई लामा को अपना विरोधी मानता है. वह पूरी तरह से यह चाहता है कि जो भी नया दलाई लामा आए, वह चीन के पक्ष की बात करे.
चीन की सुनें, ऐसा करने से चीन को तिब्बत पर अपनी हुकूमत को और मजबूत करने का मौका मिलेगा. क्या दलाई लामा का पुनर्जन्म तय करने का अधिकार चीन के पास है?
तीसरे दलाई लामा मंगोलिया में पैदा हुए थे, छठे दलाई लामा भारत में पैदा हुए थे. इसका मतलब यह नहीं कि पुनर्जन्म सिर्फ चीन में ही होगा. कोई राष्ट्रीयता या भौगोलिक सीमा पुनर्जन्म के लिए बाध्य नहीं है.
दलाई लामा ने कहा है कि वे अच्छी सेहत में हैं और लंबी उम्र का वादा कर चुके हैं. जब समय आएगा, वे आवश्यक निर्देश देंगे. इसलिए अभी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना ज़रूरी नहीं है.
क्या यह सब चीन पर निर्भर है?
चीन की सरकार ने पहले भी दलाई लामा को तिब्बत आने के लिए आमंत्रित करने में रुचि दिखाई है. कई अवसरों पर दलाई लामा ने भी तिब्बत जाने की इच्छा व्यक्त की है. लेकिन चीन की सरकार ने यह शर्त रखी कि अगर दलाई लामा चीन या तिब्बत आएं, तो उन्हें वहीं रहना होगा. इस पर दलाई लामा ने स्पष्ट कहा कि अगर वे तिब्बत आएं तो वे वहाँ रहेंगे नहीं, क्योंकि वहाँ कोई स्वतंत्रता नहीं है. यह सब पुनर्जन्म की प्रक्रिया से भी जुड़ा हुआ है.
दलाई लामा का पुनर्जन्म कैसे तय होता है?
दलाई लामा को चुना नहीं जाता, बल्कि खोजा जाता है. माना जाता है कि मृत्यु के बाद दलाई लामा नए शरीर में पुनर्जन्म लेते हैं. उनके निधन के बाद वरिष्ठ भिक्षु एक ऐसे बच्चे को खोजते हैं जो दलाई लामा का अगला अवतार हो.
पुनर्जन्म की प्रक्रिया क्या होती है?
वरिष्ठ भिक्षु कुछ आध्यात्मिक संकेतों को गहराई से देखते हैं. वे सपनों में आए संकेतों और छवियों का विश्लेषण करते हैं. देखते हैं कि मृत्यु के समय दलाई लामा की मुद्रा क्या थी, शव किस दिशा में था, और दाह संस्कार के समय धुएं की दिशा क्या थी.
इन संकेतों के आधार पर भिक्षु तिब्बत और हिमालय क्षेत्र की यात्रा करते हैं और ऐसे बच्चों की तलाश करते हैं जिनका जन्म दलाई लामा की मृत्यु के समय के आसपास हुआ हो और जिनमें असामान्य गुण दिखें. इन बच्चों का परीक्षण होता है, उन्हें वस्तुएं दी जाती हैं जिनमें से कुछ दलाई लामा की प्रिय होती हैं. जो बच्चा सही वस्तु पहचान लेता है, उसे संभावित पुनर्जन्म माना जाता है.
अगर वह बच्चा पुराने दलाई लामा से जुड़ी किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान को पहचान लेता है, तो इसे और पुख्ता संकेत माना जाता है. इसके बाद ज्योतिषीय गणनाएं और चर्चाएं होती हैं और फिर उस बच्चे को नया दलाई लामा घोषित कर दिया जाता है. इसके बाद उस बच्चे को मठ में ले जाया जाता है, जहां उसे बौद्ध शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जाता है. दलाई लामा की पहचान मान्यता की प्रक्रिया है.
उनकी मृत्यु के बाद उनके सहयोगी, वरिष्ठ लामा, धार्मिक प्रक्रिया के आधार पर यह तय करते हैं कि कौन उनका वास्तविक अवतार है. यह प्रक्रिया वर्षों चलती है और लगभग चार-पांच वर्ष बाद एक बालक की पहचान होती है.