बॉम्बे हाई कोर्ट ने केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (CSU) में एक सहकर्मी के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत करने वाली असिस्टेंट प्रोफेसर का अचानक किया गया तबादला रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा, ‘किसी भी टीचर के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं किया जा सकता, और एक महिला शिक्षक के साथ तो बिल्कुल भी नहीं.’ जस्टिस रवींद्र वी. घुगे और जस्टिस अश्विन डी. भोबे की बेंच ने यह आदेश मुंबई की रहने वाली एक असिस्टेंट प्रोफेसर की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया.
क्या है पूरा मामला?
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— India 2047 (@India2047in) July 4, 2025
असिस्टेंट प्रोफेसर ने 2023 में एक पुरुष सहकर्मी के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी. विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति (ICC) ने शिकायत को बिना किसी ठोस निष्कर्ष के खारिज कर दिया. प्रोफेसर 2018 से CSU में कार्यरत थीं. उन्होंने अपनी 7 साल लंबी प्रोबेशन अवधि को लेकर पहले भी अदालत का रुख किया था, जिसमें अदालत ने उन्हें स्थायी नियुक्ति का आदेश दिया था.
POSH शिकायत और मुंबई के गामदेवी पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धाराएं 354, 354-ए और 506 के तहत एफआईआर दर्ज करने के बाद, विश्वविद्यालय ने उनका तबादला पहले भीलवाड़ा (राजस्थान) और फिर मथुरा (उत्तर प्रदेश) कर दिया.
‘1 अगस्त तक दोबारा नियुक्त करें और बकाया सैलरी भी दें’
अदालत ने इन तबादलों को ‘दंडात्मक’ करार दिया. कोर्ट ने कहा, ‘अगर समिति यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर मामलों पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकती, तो महिला कर्मचारियों की सुरक्षा पर ज्यादा कुछ कहना ही बेकार है. एक स्थायी शिक्षक की जगह किसी गेस्ट लेक्चरर की नियुक्ति करना अस्वीकार्य है.’
कोर्ट ने निर्देश दिया, ‘प्रोफेसर को 1 अगस्त 2025 तक CSU के नासिक परिसर में पुनः नियुक्त किया जाए. उन्हें 50 फीसदी बकाया वेतन दिया जाए. POSH शिकायत को 15 दिनों के भीतर दोबारा खोला जाए और एक ‘तार्किक निष्कर्ष’ तक पहुंचा जाए.