छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि, किसी पुजारी को मंदिर का स्वामित्व नहीं माना जा सकता। पुजारी केवल देवता की पूजा करने के लिए नियुक्त प्रबंधक होता है। इस टिप्पणी के साथ ही हाईकोर्ट ने पुजारी की अपील को खारिज करते हुए राजस्व मंडल के फैसले को सही ठहराया है। पुजारी ने मंदिर के प्रबंध समिति में ट्रस्टी बनने का दावा किया था।
मामला धमतरी स्थित श्री विंध्यवासिनी मां बिलाईमाता मंदिर का है। मंदिर के पुजारी मुरली मनोहर शर्मा ने समिति के प्रबंध समिति के सदस्य बनाने को लेकर चल रहे विवाद पर राजस्व मंडल बिलासपुर के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। तब वो पुजारी परिषद समिति के अध्यक्ष के अध्यक्ष थे। 3 अक्टूबर 2015 को राजस्व मंडल ने पुजारी शर्मा की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी थी।
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प्रबंध समिति में ट्रस्टी बनना चाहता था पुजारी
दरअसल, विवाद की शुरुआत तहसीलदार के समक्ष किए गए एक आवेदन से हुई थी। जिसमें याचिकाकर्ता ने खुद का नाम ट्रस्ट रिकॉर्ड में दर्ज करने की मांग की थी। तहसीलदार ने पक्ष में आदेश दिया था और पुजारी को समिति में ट्रस्टी बनाने कहा था।
लेकिन, एसडीएम ने उसे रद्द कर दिया। जिसके बाद रायपुर के अपर आयुक्त भी एसडीएम के आदेश को सही ठहराया और पुजारी की अपील खारिज कर दी। तब पुजारी ने राजस्व मंडल के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया।
राजस्व मंडल के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील
राजस्व मंडल से पुनरीक्षण याचिका खारिज होने के बाद पुजारी शर्मा ने हाईकोर्ट में अपील की। इसमें बताया कि तहसीलदार का आदेश न्यायसंगत था। बाद के सभी राजस्व अधिकारियों ने तथ्यों का सही तरीके से परीक्षण नहीं किया।
पुजारी ने दावा किया कि, मंदिर उनके पूर्वजों द्वारा बनाई गई है। बाद में मंदिर की व्यवस्था बनाने के लिए समिति का गठन किया गया था। पुजारी ने मंदिर समिति में ट्रस्टी बनाने के लिए आदेशित करने का आग्रह किया।
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट को बताया गया कि विंध्यवासिनी मंदिर ट्रस्ट समिति 23 जनवरी 1974 से विधिवत रूप रूप से पंजीकृत संस्था है। वही मंदिर की संपत्ति का प्रबंधन करती है। उन्होंने 21 सितंबर 1989 को सिविल जज वर्ग-2, धमतरी द्वारा पारित एक निर्णय का उल्लेख किया जो अंतिम रूप से प्रभावी हो चुका है।
सिविल न्यायालय ने कहा था कि “विंध्यवासिनी ट्रस्ट समिति 23 जनवरी 1974 से विधिवत रूप से पंजीकृत संस्था है और मंदिर की संपत्ति का प्रबंधन करती है। ट्रस्टी बहुमत से एक प्रबंधक नियुक्त कर सकते हैं। लेकिन, यह नहीं कहा जा सकता कि मंदिर की संपत्ति किसी व्यक्ति विशेष की या पुजारियों के पूर्वजों की है।
हाईकोर्ट ने कहा, पुजारी केवल देवता की संपत्ति का प्रबंधन करने के लिए नियुक्त होता है। यदि वह सौंपा गया कार्य, यानी पूजा नहीं करता तो यह अधिकार वापस लिया जा सकता है। ऐसे में पुजारी को भूमिस्वामी नहीं माना जा सकता।