किसानों को हुआ है 636 करोड़ का नुकसान, जांच के नाम पर 4 साल चला कागजों पर खेल, मगर कोई नतीजा नहीं

कृषि विभाग में भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार के दौरान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में जबरदस्त खेल हुआ है। सीएम सचिवालय को मिली गाेपनीय शिकायत पर अफसरों ने प्रारंभिक जांच में स्वीकार किया था कि किसानों को 636 करोड़ रुपये बीमा की राशि कम मिली है।

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इसके बाद जांच की नाटकीय क्रम भी चला और परिणाम शून्य रहा। न किसी अधिकारी पर कार्रवाई हो पाई और न ही नुकसान की भरपाई हो सकी। प्रदेश के लगभग 5 लाख किसान आज भी न्यायसंगत बीमा राशि की बाट जोह रहे हैं। मामला 2017 के बीमित कृषकों का है।उन्हें चावल के आधार पर नुकसान का क्लेम दिया जाना था मगर अफसरों की मिलीभगत करके बीमा कंपनियों ने किसानों को धान के आधार पर बीमा राशि का भुगतान कर दिया।

प्रारंभिक जांच में आरोप लगा था कि विभाग के विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी राजेश कुमार राठौर द्वारा प्रशासकीय अनुमोदन के विरुद्ध कार्यवाही करते हुए बीमा कंपनियों को गलत लाभ पहुंचाया गया, जिससे राज्य के लाखों किसानों को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ।

यह है पूरा मामला

वर्ष 2017 की खरीफ फसल के बीमा दावों के भुगतान के लिए 17 अप्रैल 2018 को ईफको-टोक्यो और रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनियों को ज्ञापन जारी किया गया। इस ज्ञापन में कहा गया कि 2017 के बीमा दावों का भुगतान वर्ष 2016 की दरों के अनुसार किया जाए। इस बीच यह तथ्य सामने आया है कि खरीफ 2017 के बीमा दावे विवादित थे और केंद्र सरकार के अंतिम निर्णय पर आधारित होने थे। इसके बावजूद, ज्ञापन में इस महत्वपूर्ण बिंदु का उल्लेख ही नहीं किया गया।

इससे बीमा कंपनियों को विवादास्पद तरीके से भुगतान करने का अवसर मिला, जबकि उन्होंने चावल के आधार पर गणना कर दावों के भुगतान से इनकार कर दिया। इस लापरवाही के चलते राज्य के करीब पांच लाख किसानों को अपने दावे के अनुसार भुगतान नहीं मिल पाया। यह निर्णय न केवल केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के खिलाफ था, बल्कि प्रशासनिक स्वीकृति की शर्तों की भी अनदेखी की गई।

अधिकारियों ने ही बताया मामला गंभीर, फिर नस्तीबद्ध

कृषि विभाग के सचिव स्तर के अधिकारियों ने इस मामले को गंभीर लापरवाही मानते हुए उच्चस्तरीय जांच की आवश्यकता जताई है। सचिवालय स्तर पर इस मामले की फाइल में टिप्पणी की गई है कि प्रशासकीय स्वीकृति से परे जाकर बीमा कंपनियों को एकतरफा ज्ञापन जारी किया गया, जिससे राज्य के कृषकों को आर्थिक क्षति हुई है।

इस मामले में चर्चा है कि आरोपी अधिकारी राजेश कुमार राठौर को नोटिस जारी किया गया, इसके बाद उन्हें आरोप पत्र भी जारी किया गया। बाद में 20 फरवरी 2023 को प्रकरण नस्तीबद्ध कर दिया गया। नवंबर 2023 में भाजपा की सरकार आ गई और इस प्रकरण की फाइल को दोबारा खोला ही नहीं गया।

बताया जाता है कि इस पूरे प्रकरण की विभागीय जांच होनी थी जो कि नहीं हो पाई, क्योंकि इस प्रकरण में कई उच्च अधिकारी भी फंस रहे थे। अब यह मामला राज्य सरकार और कृषि विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।

इस पर राजेश कुमार राठौर, तत्कालीन विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी, का कहना है कि कोई भी शिकायत होती है तो उसकी पहले जांच होती है, फिर कारण बताओ नोटिस का जवाब दिया जाता है। मैने नोटिस का जवाब दिया, आरोप पत्र में भी जितने आरोप लगाए हैं उसका जवाब दिया हूं। इस प्रकरण में मेरा जवाब संतोषजनक रहा। इसलिए प्रकरण नस्तीबद्ध हो गया।

सचिव बोलीं- मामले की जांच करवा लेती हूं

वहीं छत्तीसगढ़ के सचिव एवं कृषि उत्पादन आयुक्त शहला निगार का कहना है कि ये प्रकरण मेरे पूर्व के अधिकारियों के समय का होगा। इस प्रकरण में अगर जवाब असंतोषजनक रहा और आरोप पत्र जारी था तो विभागीय जांच होनी थी, मामले की जांच करवा लेती हूं।

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