Madhya Pradesh: जबलपुर जिले में शराब व्यापार से जुड़ा एक संगठित सिंडिकेट धीरे-धीरे बेनकाब हो रहा है. हाल ही में बरेला समूह की दुकानों में घुसकर की गई मारपीट की घटना ने आबकारी विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इस पूरे घटनाक्रम में सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे, सहायक जिला आबकारी अधिकारी इंद्रेश तिवारी, उनके ड्राइवर और एक आरक्षक द्वारा दुकान में घुसकर ठेकेदार के साथ गाली-गलौज और मारपीट करने का आरोप सामने आया है. शिकायत बरेला थाने में दर्ज करवाई गई है. ठेकेदार का आरोप है कि 2 करोड़ 60 लाख रुपये की मासिक वसूली में हिस्सेदारी न देने पर यह हमला किया गया. लेकिन मामला सिर्फ मारपीट तक सीमित नहीं है इसके पीछे एक गहरी साजिश और संगठित वसूली सिंडिकेट का खेल चल रहा है.
शराब पर ओवररेटिंग और सिंडिकेट की मिलीभगत-
जिले भर में चल रही ओवररेटिंग शराब बिक्री की शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं। शराब की बोतलों पर तय कीमत से ज्यादा वसूली आम हो चुकी है, और यह काम किसी एक दुकान का नहीं बल्कि पूरे सिंडिकेट का है. सूत्रों के अनुसार, इस सिंडिकेट का संचालन शराब माफिया आशीष शिवहरे के हाथों में है, जिसकी आबकारी अधिकारियों से गहरी सांठगांठ बताई जा रही है। हैरानी की बात तो यह है कि इन सबके बावजूद जब पूरे जिले में शिकायतें सामने आईं, तो कलेक्टर कार्यालय द्वारा विभाग को क्लीन चिट दे दी गई. प्रशासनिक चुप्पी ने इस पूरे खेल को और गहराई दे दी है.
इंदौर कार्यकाल के ‘कारनामे’ भी चर्चा में-
संजीव दुबे का इंदौर में आबकारी विभाग में पूर्व कार्यकाल भी विवादों से अछूता नहीं रहा। सूत्रों के मुताबिक, वहां भी उन्होंने ठेकेदारों पर अनुचित दबाव बनाया और कई स्थानों पर शराब के अवैध कारोबार को नजरअंदाज किया गया. यह पहला मौका नहीं है जब उनके खिलाफ शिकायतें सामने आई हैं, लेकिन यह पहला अवसर है जब मामला मारपीट, गालीगलौज और वसूली के सीधे आरोपों तक पहुंचा है.
अब निगाहें कार्रवाई पर-
प्रकरण ने पूरे जिले में प्रशासनिक कार्यशैली और न्यायिक प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है. आबकारी विभाग की विश्वसनीयता और निष्पक्षता को लेकर जनता में असंतोष है. अब देखना होगा कि पुलिस, प्रशासन और शासन इस पूरे मामले में किस तरह की कार्रवाई करते हैं, क्या दोषियों को बचाया जाएगा या एक निष्पक्ष जांच के जरिए सच्चाई सामने लाई जाएगी.