देश में दर्द का बाजार काफी बड़ा हो गया है. जी हां, ये कोई मजाक की बात नहीं है. भारत में लोग अपने दर्द से राहत पाने के जिए बिना डॉक्टर की पर्ची से मिलने वाली टैबलेट, स्प्रे और क्रीम का इस्तेमाल तेजी से कर रहे हैं. जिससे बीते 5 बरस में पेन मैनेज्मेंट मार्केट में एक अरब डॉलर से ज्यादा का इजाफा देखने को मिल चुका है. नीलसन के आंकड़ों का हवाला देते हुए उद्योग के अधिकारियों ने बताया कि यह कैटेगिरी डॉक्टर की पर्ची के बिना मिलने वाली दवाओं के क्षेत्र में सबसे बड़ी है और महामारी के बाद से औसतन हर हफ़्ते लगभग पांच ब्रांड लॉन्च हुए हैं. 2020 में दर्द से राहत पाने के लिए वोलिनी, ओमनीजेल, डोलो और सेरिडॉन सहित 1,552 ब्रांड थे, जिनकी मौजूदा समय में संख्या 2,771 है.
करीब 16 हजार करोड़ का मार्केट
ओमनीजेल जैसे सबसे बड़े रूबेफेसिएंट ब्रांड को बेचने वाली सिप्ला हेल्थ के एमडी शिवम पुरी ने ईटी की रिपोर्ट में कहा कि कंज्यूमर किसी भी दर्द से तुरंत राहत पाने के लिए ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं. रूबेफेसिएंट, बाहरी इस्तेमाल के लिए जैल और क्रीम होते हैं. पुरी ने कहा कि शहरीकरण के बढ़ने और पुरानी बीमारियों में बढ़ोतरी के कारण तेज और ज़्यादा सुविधाजनक दवाओं की ज़रूरत बढ़ गई है जो सभी प्लेटफ़ॉर्म पर उपलब्ध हों. यह स्थिति तब है जब मेडिकल प्रोफेशनल दर्द निवारक दवाओं के बेतरतीब उपयोग पर सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं.
शहरी बाज़ारों में, खासकर जिम और खेलकूद से होने वाली चोटों के मामले में, पेन रिलीफ कैटेगिरी अक्सर लाइफस्टाइल से जुड़ी होती है. नतीजतन, एनाल्जेसिक (दर्द निवारक दवा) और रूबेफेसिएंट्स का बाज़ार मई 2020 के 6,820 करोड़ रुपए से बढ़कर इस साल मई तक दोगुने से भी ज़्यादा बढ़कर 15,905 करोड़ रुपए हो गया, जो 18 फीसदी सीजीएआर की दर से बढ़ रहा है. यह ओवर-द-काउंटर मार्केट की कुल वृद्धि से तीन गुना ज़्यादा है, जो 6 फीसदी CAGR से बढ़कर 80,000 करोड़ रुपए की हो गई.
कोविड के बाद बदला नजरिया
मार्केट रिसर्चर फार्माट्रैक के आंकड़ों के अनुसार, दर्द निवारक दवाओं का बाज़ार में 75 फीसदी हिस्सा एनाल्जेसिक दवाओं का है और इनमें पैरासिटामोल का सबसे बड़ा योगदान है. सेरिडॉन बेचने वाली कंपनी बायर के दक्षिण एशिया के कंज्यूमर हेल्थ बिजनेस हेड संदीप वर्मा ने कहा कि कोविड ने पेन मैनेज्मेंट के बारे में भारतीयों के नज़रिए को बदल दिया है. उन्होंने कहा कि बहुत से भारतीय दर्द निवारक दवाओं को कमजोरी की निशानी मानते हैं या उन पर निर्भर होने की चिंता करते हैं.
उन्होंने कहा कि कोविड ने हममें से कई लोगों को इस बात के प्रति जागरूक किया है कि कैसे तनाव, थकावट और यहां तक कि हल्का लेकिन बार-बार होने वाला दर्द भी हमारी सेहत और प्रोडक्टीविटी को कम कर सकता है. उन्होंने आगे कहा कि ज़्यादातर लोग यह समझने लगे हैं कि बिना इलाज के दर्द सहना उनके लाइफ की क्वालिटी को प्रभावित करता है. विशेषज्ञों ने कहा कि दर्द निवारक दवाओं का इस्तेमाल सूजन और उससे जुड़ी समस्याओं के इलाज के लिए भी किया जाता है, जिससे इन गोलियों की ज़रूरत बढ़ रही है.
फार्माट्रैक की वाइस प्रेसिडेंट (कमर्शियल) शीतल सपाले ने मीडिया रिपोर्ट में कहा कि पैरासिटामोल पर हावी दर्द निवारक दवाओं का सेगमेंट 10 फीसदी की स्थिर दर से बढ़ रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पैरासिटामोल दवाओं को अन्य बीमारियों के साथ लिया जाता है, जिनमें गठिया, कोई अन्य बैक्टीरियल या वायरल वायरस शामिल हो सकता है.
हो सकते हैं गंभीर नुकसान
मुंबई स्थित वीकेयर वेलनेस के कंसल्टेंट फिजिशियन नितिन कुमार सिन्हा ने मीडिया रिपोर्ट में बताया कि लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्याएं—जैसे बढ़ता स्ट्रेस, नींद की कमी और बढ़ता मोटापा—दर्द निवारक दवाओं की बढ़ती मांग के कारण हैं. उन्होंने कहा कि शारीरिक व्यायाम की कमी, शरीर के बढ़ते वजन के कारण घुटनों और जोड़ों में दर्द, एंजाइटी, डिप्रेशन, ये सभी शरीर में दर्द, सिरदर्द या माइग्रेन में वृद्धि के कारण हैं. सिन्हा ने कहा कि सेल्फ मेडिकेशन करने वाले लोगों की संख्या में भी वृद्धि हुई है और कई अनिवार्य प्रिस्क्रिप्शन दवाएं, तेज दर्द निवारक और सूजन-रोधी दवाएं – जिनके लंबे समय तक इस्तेमाल से किडनी को नुकसान जैसे गंभीर हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं – आज बिना प्रिस्क्रिप्शन के केमिस्ट की दुकानों पर आसानी से उपलब्ध हैं.
डर्मा प्रोडक्ट्स के मार्केट में भी इजाफा
दर्द निवारक श्रेणी में सबसे ज़्यादा बिकने वाली दवाएं आईपीसीए की ज़ीरोडोल एसपी, जैनसेन की अल्ट्रासेट, जीएसके की कैलपोल, माइक्रो लैब की डोलो, टोरेंट की काइमोरल फोर्ट और सिप्ला की इबुजेसिक प्लस हैं. इनमें से ज़्यादातर प्रिस्क्रिप्शन दवाएं हैं. हालांकि, महामारी के बाद से दर्द ही एकमात्र कैटेगिरी नहीं है जिसमें लोग सेल्फ-मेडिकेशन कर रहे हैं. स्किन स्क्रीम, जो पहले डर्मोटोलॉजिस्ट द्वारा प्रिस्क्राइब की जाती थीं, अब कंज्यूमर्स खासकर जेनरेशन जेड कंज्यूमर्स को ज्यादा आकर्षित कर रही हैं. डर्मा प्रोडक्ट्स, जो खोपड़ी और त्वचा की समस्याओं का इलाज करते हैं और दर्द निवारक के बाद दूसरी सबसे बड़ी कैटेगिरीह हैं, पिछले 5 सालों में 8 फीसदी सीएजीआर से बढ़े हैं और अब 14,854 करोड़ रुपए का मार्केट बन गया है.