दिल्ली एनसीआर में शामिल गुरुग्राम, फरीदाबाद और मानेसर जैसे बड़े शहरों में अब स्वच्छता अभियान से जुड़ी व्यवस्थाओं में बड़ी गड़बड़ी देखने को मिल रही है. स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत घरों से 100% कूड़ा उठाने के लिए इन शहरों में अलग-अलग एजेंसियों को हायर किया गया. इन एजेंसियों ने कहीं भी 100% कूड़ा घरों से नहीं उठाया और झूठा डेटा अपलोड कर दिया. इस डेटा के आधार पर निगम ने निजि एजेंसियों को करोड़ों रुपये का भुगतान कर दिया.
इस पूरे मामले का खुलासा तब हुआ जब शहरी स्थानीय निकाय विभाग ने एक नोटिस जारी किया. इस नोटिस के सामने आने के बाद हरियाणा के स्वच्छता व्यवस्था पर गंभीर सवालिया निशान लग गए हैं. घरों से कूड़ा उठाने के मामले में सरकारी नियम के अनुसार सभी प्राइवेट एजेंसियों को शहरी स्थानीय निकाय विभाग के स्वच्छता पोर्टल पर संसाधनों और कामों से जुड़ी सारी जानकारी अपलोड करनी होती है. प्राइवेट एजेंसियों के इस डेटा के मुताबिक नोडल अधिकारी एजेंसियों का बिल अप्रूव कर उन्हें भुगतान करते हैं.
हर महीने 4 करोड़ का भुगतान
गुरुग्राम, मानेसर समेत कुल 87 निकायों पर आरोप है कि अधिकारियों की मिलीभगत की वजह से पोर्टल पर झूठी जानकारी अपलोड की गई और डेटा के मुताबिक प्राइवेट एजेंसियों ने सरकार के करोड़ों रुपये ऐंठ लिए. गुरुग्राम में जून 2024 में पहले ईको ग्रीन कंपनी को कूड़ा उठाने का काम दिया गया था. इस एजेंसी को हर महीने 4 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाता था. इसी कंपनी को फरीदाबाद में भी यही काम सौंपा गया था. इस साल जून में इस कंपनी से करार खत्म किया गया और विमलराज एजेंसी को काम दिया गया. मानेसर की बात करें तो वहां पर पिछले 2 साल से किसी स्थायी एजेंसी को यह काम नहीं दिया गया. ट्रैक्टरों से ही कूड़ा इकट्ठा करने की खानापूर्ति की जा रही है. इतना ही नहीं एजेंसियों के नाम से करोड़ों रुपये भुगतान भी किया गया है.
क्यों की झूठी रिपोर्ट अपलोड
स्वच्छ सर्वेक्षण में बाकी शहरों और राज्यों के मुकाबले ज्यादा अच्छी रैंकिंग पाने के लिए और निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए पोर्टल पर अधिकारियों ने झूठी रिपोर्ट अपलोड की है. स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 के परिणामों ने अधिकारियों की इस झूठी रिपोर्ट की पोल खोल कर रख दी है. फिलहाल शहरी स्थानीय निकाय के अधिकारी कुछ भी नहीं बोल रहे हैं.