विधानसभा चुनाव से पहले क्या टूट जाएगी ममता बनर्जी की पार्टी? ये मुस्लिम नेता बनाएंगे नया दल

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में टूट का खतरा पैदा हो गया है. भरतपुर के विधायक हुमायूं कबीर ने 15 अगस्त के बाद नई पार्टी बनाने की घोषणा की. हुमायूं कबीर ने जिला नेतृत्व के विरोध में नई पार्टी बनाने का फैसला किया. हुमायूं की पार्टी मालदा, मुर्शिदाबाद, दिनाजपुर और नादिया में 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी.

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हुमायूं ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उन्हें ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी से कोई नाराजगी नहीं है, लेकिन उनका आरोप है कि मुर्शिदाबाद जिला नेतृत्व नेता के निर्देशों का पालन भी नहीं कर रहा है. हुमायूं ने कहा, “मैं एक समूह में यह साबित करना चाहता हूं कि खेती बैलों से की जाती है, बकरियों से नहीं.”

हुमायूं कबीर का स्पष्ट कहना है कि उन्हें नेता ममता बनर्जी या तृणमूल अखिल भारतीय महासचिव अभिषेक बनर्जी से कोई नाराजगी नहीं है. यह गुस्सा मुख्य रूप से जिला नेतृत्व के प्रति है. इस मामले में उनके निशाने पर फिरहाद हकीम, खलीलुर रहमान और अपूर्व सरकार हैं.

हुमायूं ने कहा, “जो अध्यक्ष हैं, वही समस्या हैं. उन्होंने कोई चर्चा नहीं की. मुझे कोई महत्व नहीं मिलता. मुझे विधानसभा में कोई महत्व नहीं मिलता, मुझे रेजिनगर विधानसभा में कोई महत्व नहीं मिलता, जहां मैं 62 वर्षों से रह रहा हूं. जो हमसे बहुत जूनियर हैं, चाहे वह अपूर्व सरकार हों या खलीलुर रहमान, उन्हें महत्व मिल रहा है.”

तो क्या आप विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल के अल्पसंख्यक वोट बैंक को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं? इस सवाल पर हुमायूं का स्पष्ट कहना है, “तृणमूल कांग्रेस ही सत्ता में आएगी और नेता चौथी बार ममता ही मुख्यमंत्री होगी, लेकिन मैं पार्टी बनाकर नेता को यह एहसास दिलाऊंगा कि मेरे जैसे लोगों की भले ही जरूरत न हो, लेकिन बकरियों से कूटे जा रहे धान को योग्य मतदाताओं का सम्मान नहीं मिल रहा है. मैं ऐसी व्यवस्था करूंगा कि योग्य मतदाताओं को सम्मान मिले.”

क्या अल्पसंख्यक वोट में सेंध लगाएंगे हुमायूं?

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, हुमायूं की बातों से कम से कम यह तो स्पष्ट है कि हुमायूं तृणमूल कांग्रेस के अल्पसंख्यक बहुल वोट बैंक वाले क्षेत्रों में चुनाव लड़ेंगे. गौरतलब है कि इससे पहले उन्होंने भाजपा के टिकट पर मुर्शिदाबाद लोकसभा क्षेत्र में 2.5 लाख वोट हासिल किए थे. हुमायूं ने इसके आधार पर लोगों के जनसंपर्क पर एक सर्वेक्षण कराया. वह इसके आधार पर एक नई पार्टी बनाने पर वचार कर रहे हैं.

वहीं हुमायूं के फैसले पर तृणमूल प्रवक्ता जयप्रकाश मजूमदार ने कहा, “चींटी पंख उगाते-उगाते मर रही है. कई नेताओं को ऐसा लगता है. अगर कोई चाहे तो पार्टी ऐसा कर सकती है. खासकर अगर भाजपा पीछे से पैसा दे तो वह ऐसा कर सकती है, लेकिन लाभ का क्या फायदा होगा… यह समझा जा सकता है. इसे लोगों का समर्थन भी नहीं मिलता.”

उन्होंने कहा, ‘भाजपा वित्तीय सहायता दे रही है’ लेकिन ऐसा कैसे लगता है कि भाजपा पीछे से वित्तीय सहायता दे रही है? क्योंकि कुछ दिन पहले हुमायूं कबीर ने खुद स्पष्ट किया था कि वह प्रियंका गांधी से बातचीत कर रहे हैं. हालांकि, तृणमूल प्रवक्ता ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस अब ऐसी वित्तीय स्थिति में है. अगर वे बंगाल में अपनी राज्य पार्टी की भी मदद नहीं कर सकते, तो वे नवगठित पार्टी की मदद कैसे कर सकते हैं जो टूट गई है?”

हुमायूं के ऐलान से गरमाई सियासत

इस बारे में पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “वह अल्पसंख्यक हैं, इसलिए यह सोचने का कोई कारण नहीं है कि अल्पसंख्यक उन्हें वोट देंगे. मुझे हराने के लिए कितनी बार हुमायूं का इस्तेमाल अशांति पैदा करने के लिए किया गया था, इसे देखते हुए 30 प्रतिशत हिंदुओं और 70 प्रतिशत अल्पसंख्यकों के बारे में टिप्पणियां भी की गई थीं. अब नेता को लग सकता है कि इस बार हुमायूं कबीर मेरा बोझ बन जाएगा, बोझ हटाना होगा. उसे नजरअंदाज किया जा रहा है. इसलिए उन्हें लगता है कि उन्हें बदले में कुछ करना चाहिए.”

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