जबलपुर के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के छात्र भरत तोमर ने बाजरे के आटे से एक खाने योग्य कप बनाया है। यह कप पूरी तरह से जैविक, ग्लूटेन मुक्त और पोषक तत्वों से भरपूर है।
पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को ध्यान में रखते हुए जबलपुर की जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के एक छात्र ने अनोखा कप बनाया है। गुना के रहने वाले भरत तोमर जबलपुर के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से एमबीए एग्री-बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे हैं। उन्होंने मोटे अनाज बाजरे के आटे से ऐसा एडिबल कप यानी कि खाने योग्य कप तैयार किया है जिसे चाय पीने के बाद खाया जा सकता है। इस कप को सूप, चाय, आइसक्रीम, ग्रीन टी से लेकर कई सारी चीजों में उपयोग किया जा सकेगा।
छात्र भरत ने इस आइडिया को जबलपुर स्थित जवाहरलाल नेहरू एग्रीबिजनेस इंक्यूबेशन सेंटर के सीईओ डॉ. मोनी थॉमस के समक्ष प्रस्तुत किया था, जिसके बाद उनके इस काम की सराहना हो रही है। अब यह प्रोजेक्ट केंद्र सरकार की RKVY-RAFTAR योजना के तहत चार लाख रुपए की ग्रांट प्राप्त करने जा रहा है। यह अनुदान कृषि मंत्रालय द्वारा प्रदान किया जाएगा, जिससे आगे प्रोडक्ट रिफाइनमेंट, लैब टेस्टिंग और सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
भरत द्वारा तैयार किया गया यह कप पूरी तरह से बाजरे के आटे से बना है, जिसमें बाइंडिंग एजेंट के रूप में कसावा पाउडर और ग्वार गम का उपयोग किया गया है। स्वाद को बेहतर बनाने के लिए इसमें चॉकलेट फ्लेवर भी जोड़ा गया है। हालांकि अभी जो कप तैयार हुआ है वह एक प्रोटोटाइप है और इसमें आने वाले समय में कस्टमर फीडबैक के आधार पर सुधार किए जाएंगे। भरत ने कहा कि अभी इस कप को डिजाइन करने के बाद दिल्ली से बनवाया गया है।
भरत ने TV9 भारतवर्ष से बातचीत में बताया कि यह एडिबल कप न केवल पोषण से भरपूर है, बल्कि यह पूरी तरह से ग्लूटेन-फ्री भी है, जिससे यह उन लोगों के लिए भी सुरक्षित है जो गेहूं या ग्लूटेन से एलर्जिक होते हैं। बाजरा एक मोटा अनाज है जो प्रोटीन, फाइबर और मिनरल्स का अच्छा स्रोत होता है। इस उत्पाद की बढ़ती मांग से किसानों को भी सीधा लाभ मिलेगा, जिससे बाजरा उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही लोगों को होनी वाली कई तरह की बीमारियों से भी छुटकारा मिलेगा।
इसके अतिरिक्त यह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी अहम कदम है। वर्तमान में प्लास्टिक और पेपर कप का अत्यधिक उपयोग होता है, जिसमें गर्म चाय या कॉफी डालने पर माइक्रोप्लास्टिक और बीपीए (बिसफेनोल-ए) जैसे हानिकारक रसायन मिल सकते हैं जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। भरत का यह बाजरे से बना कप इस समस्या का समाधान प्रदान करता है।
भरत ने कहा कि एक कप को बनाने की लागत लगभग 1 से 2 रुपए के बीच आती है और इसका होलसेल मूल्य 4-5 रुपए तक रहेगा। एक किलोग्राम सामग्री से करीब 30 से 40 कप बनाए जा सकते हैं। यह कप 20-25 मिनट तक गर्म चाय या कॉफी को होल्ड कर सकता है।
भरत का उद्देश्य इस प्रोडक्ट को बाजार में बड़े स्तर पर लाना है, जिससे पर्यावरण के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य की भी रक्षा हो सके। इस अनोखे इनोवेशन के जरिए वे युवाओं के लिए स्टार्टअप की प्रेरणा भी बन रहे हैं। भरत का मानना है कि आने वाला समय मिलेट आधारित उत्पादों का है और अगर सही दिशा में काम किया जाए तो भारत न केवल हेल्दी विकल्पों की ओर अग्रसर होगा, बल्कि पर्यावरण संतुलन की दिशा में भी मजबूती से कदम रखेगा। साथ ही इससे महिलाओं एवं युवाओं को भी रोजगार मिलेगा।