इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोगियों के साथ एटीएम मशीन जैसा व्यवहार किए जाने पर नाराजगी व्यक्त की है और एक गर्भवती महिला के गर्भस्थ शिशु की मौत के मामले में शुरू की गई आपराधिक कार्रवाई के खिलाफ डॉक्टर की याचिका खारिज कर दी. न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने कहा कि आजकल नर्सिंग होम और अस्पतालों में अपर्याप्त डॉक्टरों या बुनियादी ढांचे के बावजूद मरीजों को इलाज के लिए लुभाना आम बात हो गई है.
कोर्ट ने कहा कि मेडिकल सुविधाओं ने मरीजों से ‘पैसे ऐंठने के लिए उन्हें गिनी पिग/एटीएम मशीन की तरह इस्तेमाल करना’ शुरू कर दिया है. इसलिए, कोर्ट ने नर्सिंग होम के मालिक डॉ. अशोक कुमार राय की याचिका खारिज कर दी.
क्या है पूरा मामला?
आरोप है कि डॉक्टर ने एक गर्भवती महिला को प्रसव के लिए भर्ती किया और एनेस्थेटिस्ट (बेहोश करने वाले डॉक्टर) के नर्सिंग होम देर से पहुंचने की वजह से काफी देर तक ऑपरेशन नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप गर्भस्थ शिशु की मृत्यु हो गई थी. डॉक्टर ने इस मामले में अपने खिलाफ जारी आपराधिक कार्यवाही को चुनौती दी थी.
कोर्ट ने खारिज की याचिका
कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि चिकित्सा पेशेवरों को संरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन उचित सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के बिना नर्सिंग होम चलाने वालों को नहीं. डॉक्टर इस मामले में अपने खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को चुनौती दे रहे थे. कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि चिकित्सा पेशेवरों को संरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन उचित सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के बिना नर्सिंग होम चलाने वालों को नहीं.
परिजन से वसूली मोटी रकम
मामले के रिकॉर्ड पर गौर करने के बाद कोर्ट ने पाया कि मौजूदा मामला विशुद्ध रूप से दुस्साहस का है, जिसमें डॉक्टर ने मरीज को भर्ती किया और ऑपरेशन के लिए परिजनों से सहमति लेने के बाद एनेस्थेटिक के नहीं आने की वजह से समय पर ऑपरेशन नहीं किया, जिससे भ्रूण खराब हो गया. कोर्ट ने पाया कि इसके बावजूद, डॉक्टर ने परिजन से मोटी रकम वसूली.
समय पर इलाज उपलब्ध कराने में सावधानी
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें डॉक्टर योग्य नहीं था, बल्कि यहां प्रश्न यह है कि क्या डॉक्टर ने समय पर इलाज उपलब्ध कराने में उचित सावधानी बरती या लापरवाही की. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हालांकि परिजनों से दोपहर 12 बजे सहमति ली गई, ऑपरेशन शाम साढ़े पांच बजे किया गया. कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर या नर्सिंग होम की तरफ से चार-पांच घंटे की इस देरी के लिए कोई तर्क पेश नहीं किया गया.