छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सली कमांडर हिड़मा के गांव पूवर्ती में बस्तर का पहला 15 मीटर लंबा बेली ब्रिज बनकर तैयार हो गया है। 1940 के दशक में पहली बार ब्रिटिश सेना के डोनाल्ड बेली ने इसका डिजाइन किया था। जिसके बाद से यह उपयोग में आया।
अब माओवाद इलाके में इस ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है। सुकमा जिले में यह ब्रिज सिलगेर से पूवर्ती को जोड़ रहा है। करीब 5 से ज्यादा गांवों को इसका फायदा मिलेगा। अब बारिश में भी ये इलाका नहीं कटेगा। बेली ब्रिज भारी वाहनों का लोड उठाने में भी सक्षम है।
BRO ने शुरू किया काम
दरअसल, सिलगेर से पूवर्ती के बीच BRO (सीमा सड़क संगठन) सड़क निर्माण का काम कर रही है। यह इलाका नक्सली कमांडर हिड़मा और देवा का गढ़ है। हालांकि, कुछ महीने पहले ही यहां सुरक्षाबलों का कैंप खुला है। जिसके बाद से नक्सली बैकफुट भी हुए हैं। इलाके में थोड़ी शांति है। इन गांवों तक विकास पहुंचाने की कवायद शुरू हो गई है।
केंद्र सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए 66 करोड़ रुपए की लागत से 64 किमी की सड़क निर्माण को मंजूरी दी है। यहां सड़क निर्माण का जिम्मा BRO को दिया है। जिसने कुछ महीने पहले ही काम भी शुरू कर दिया है।
इन इलाकों को मिल रहा फायदा
एलमागुड़ा से पूवर्ती तक 51 किमी लंबी सड़क बन रही है। जो बेहद ही महत्वपूर्ण है। इसकी लागत 53 करोड़ रुपए है। इसका सीधा फायदा सिलगेर, पूवर्ती, तिम्मापुरम, गोल्लाकोंडा, टेकलगुड़ा, जब्बागट्टा और तुमलपाड़ इलाके के लोगों को मिलेगा।
15 मीटर लंबा बना ब्रिज
इसी बीच पूवर्ती के नजदीक बरसाती नाले पर BRO ने करीब 15 मीटर लंबा बेली ब्रिज बना दिया है। जिससे अब बारिश में भी आवाजाही बाधित नहीं होगा। फोर्स की गाड़ियों से लेकर व्यापारी भी बड़ी आसानी से गांव तक पहुंच सकेंगे। ग्रामीण भी रोज की जरूरत को पूरा करने आस-पास के गांव जा सकेंगे।
क्या होता है बेली ब्रिज?
बेली ब्रिज एक तरह का अस्थाई या स्थायी पुल है। जिसे कम समय में बिना किसी भारी मशीनरी के स्टील के पूर्व-निर्मित हिस्सों से जोड़ा जाता है। इसे नट-बोल्ट से जोड़ा जाता है।
इसका सबसे ज्यादा उपयोग सेना, आपदा राहत या ऐसे इलाकों में होता है, जहां स्थायी पुल बनाना मुश्किल हो। इसे 1940 के दशक में ब्रिटिश सेना के डोनाल्ड बेली ने डिजाइन किया था। इसी वजह से इसे बेली कहा जाता है।
बेली ब्रिज का इस्तेमाल
- सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना करती है।
- ग्रामीण इलाकों में जहां स्थायी पुल बनाना कठिन हो।
- आपदा प्रबंधन में (जैसे बाढ़ से पुल टूटने पर) रेलवे और सड़कों के रख-रखाव के दौरान।