मऊगंज जिले से चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां एक बुज़ुर्ग की ज़िंदगी भर की कमाई – चार एकड़ ज़मीन – उसे बिना बताए, उसके ही बेटे के नाम कर दी गई। इस ज़मीन हड़पने की साजिश में पटवारी की भूमिका सामने आई है, जिसने बिना मालिक की सहमति के फर्जी पुल्ली बनाकर नामांतरण की प्रक्रिया पूरी कर दी.
पीड़ित बुज़ुर्ग ने बताया कि उन्होंने अपने चार बेटों को पहले ही हिस्सा देकर शेष चार एकड़ ज़मीन अपने जीवनयापन के लिए बचाकर रखी थी। मगर उसी जमीन को उनका एक बेटा पटवारी प्रशांत मिश्रा से सांठगांठ कर हथिया गया। जब बुज़ुर्ग ने इसका विरोध किया तो बेटे ने उन्हें जमीन पर पटककर बुरी तरह पीटा.
यह मामला सिर्फ पारिवारिक विवाद नहीं, बल्कि पूरे राजस्व तंत्र की सड़ांध को उजागर करता है। यह सवाल खड़ा करता है कि जब असली ज़मीन मालिक ज़िंदा है, तो उसकी सहमति के बिना नामांतरण कैसे हो सकता है? क्या प्रशासन और पुलिस दोनों की मिलीभगत से ऐसा संभव हुआ?
पीड़ित ने शाहपुर थाने में शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. न्याय की उम्मीद में वह अब कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि मऊगंज जैसे क्षेत्रों में आम जनता की जमीन और न्याय दोनों ही सुरक्षित नहीं हैं.
अब सवाल उठता है, क्या पटवारी प्रशांत मिश्रा पर कोई कार्रवाई होगी? क्या प्रशासन और पुलिस इस मामले में जिम्मेदारों को सजा दिला पाएंगे, या फिर यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा?