कैश कांड में घिरे हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा की याचिका पर थोड़ी देर में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने जा रही है. इससे पहले जस्टिस वर्मा ने कोर्ट से याचिका में अपनी पहचान को गुप्त रखने की अनुमति देने का आग्रह किया है. इस संबंध में जस्टिस वर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में उन्होंने अपनी पहचान छिपाई की और अपने नाम की जगह XXX का इस्तेमाल किया है. जस्टिस वर्मा ने मामले में अपनी पहचान उजागर नहीं करने की मंजूरी देने के लिए याचिका दायर की है. आज तक के पास जस्टिस वर्मा की ओर से दायर की गई याचिका की कॉपी है.
इस याचिका में जस्टिस वर्मा ने कहा है कि अगर उनकी याचिका को मंजूरी नहीं दी गई तो उन्हें अपूरणीय नुकसान होगा. उन्होंने अपनी याचिका में रिट याचिका XXX के नाम से दर्ज करने की मंजूरी मांगी है ताकि उनकी पहचान छिपाई जा सके. जस्टिस वर्मा का कहना है कि वह हाईकोर्ट के सिटिंग जज हैं और इन-हाउस प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से गोपनीय रखने के लिए डिजाइन किया जाता है.
क्या है मामला?
जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित सरकारी आवास में 14 मार्च की रात आग लग गई थी. इस घटना के समय जस्टिस यशवंत वर्मा घर में नहीं थे. उनके परिवार के सदस्यों ने आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड से मदद मांगी. दिल्ली फायर डिपार्टमेंट ने तत्काल एक टीम को जज के घर भेजा. इसके बाद मीडिया में खबरें आईं कि जस्टिस वर्मा के सरकारी बंगले में आग बुझाने के दौरान भारी मात्रा में कैश देखा गया.
इस बीच 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कॉलेजियम की बैठक बुलाई. इस बैठक में जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर इलाहाबाद हाई कोर्ट में किए जाने का प्रस्ताव लाया गया. साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को इस मामले की जांच सौंपी गई. इस जांच रिपोर्ट के आधार पर ही जस्टिस वर्मा के तबादले पर फैसला लिया जाना है. हालांकि, मामले में एक नया ट्विस्ट तब आया, जब दिल्ली फायर ब्रिगेड चीफ अतुल गर्ग ने दावा किया कि जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर आग बुझाने के दौरान फायर फाइटर्स को कोई नकदी नहीं मिली.