इंडियन नेवी को मिला नया युद्धपोत Himgiri, ब्रह्मोस-बराक मिसाइलों से लैस 

भारत के आत्मनिर्भर रक्षा उद्योग के लिए एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है. गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) लिमिटेड ने सोमवार को भारतीय नौसेना के प्रोजेक्ट 17ए के तहत बनाई जा रही तीन एडवांस्ड गाइडेड-मिसाइल फ्रिगेट्स में से पहली फ्रिगेट ‘हिमगिरी’ को सौंप दिया. यह नौसेना की समुद्री सतह पर लड़ने वाली शक्ति को मजबूत करने में एक बड़ा कदम है.

‘हिमगिरी’ का सफर और महत्व

‘हिमगिरी’ GRSE द्वारा बनाई और सौंपी गई 801वीं नाव है और 112वीं युद्धपोत है. यह फ्रिगेट GRSE के 65 साल के सफर में बनाई गई सबसे बड़ी और तकनीकी रूप से उन्नत जहाजों में से एक है. इसकी लंबाई 149 मीटर है. वजन 6,670 टन है. यह नौसेना के लिए एक शानदार तोहफा है, जो देश की शिपबिल्डिंग में नई ऊंचाइयों को छू रहा है.

प्रोजेक्ट 17ए की कीमत 21,833 करोड़ रुपये से ज्यादा है. इसने भारत के छोटे-मोटे उद्यमों (MSMEs), स्टार्टअप्स, और मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) को फायदा पहुंचाया है. इससे नौकरियां पैदा हुई हैं. देश का रक्षा उद्योग मजबूत हुआ है. ईस्टर्न नेवल कमांड के चीफ स्टाफ ऑफिसर (टेक्निकल) रियर एडमिरल रवनीश सेठ ने नौसेना की ओर से ‘हिमगिरी’ को स्वीकार किया.

कब और कैसे बनी ‘हिमगिरी’?

‘हिमगिरी’ का जलावतरण (लॉन्च) 14 दिसंबर 2020 को हुआ था. इसे बनाने में GRSE ने पूरी मेहनत लगाई, और अब यह नौसेना के लिए तैयार है. यह जहाज आधुनिक हथियारों से लैस है, जैसे कि ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, जो दुश्मन की नौकाओं और जमीन पर हमले के लिए इस्तेमाल हो सकती है. इसके अलावा, बराक-8 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें हवा से आने वाले खतरे को रोकने में मदद करती हैं

इस फ्रिगेट में डीजल और गैस टरबाइन का संयुक्त प्रणोदन तंत्र (CODAG) लगा है, जो इसे तेज और शक्तिशाली बनाता है. इसमें एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे (AESA) रडार और उन्नत युद्ध प्रणाली है, जो हवा, सतह और पानी के नीचे के सभी खतरे से निपटने में सक्षम है. जहाज में 225 जवानों के रहने की व्यवस्था है. हेलिकॉप्टर उड़ाने के लिए पूरा सिस्टम तैयार किया गया है. यह न केवल लड़ाई के लिए तैयार है, बल्कि जवानों के आराम का भी ख्याल रखता है.

‘आत्मनिर्भर भारत’ का प्रतीक

‘हिमगिरी’ भारतीय सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ का प्रतीक है. इसका मतलब है कि हम अपने दम पर हथियार और जहाज बना सकते हैं. इस प्रोजेक्ट में ज्यादातर सामान और तकनीक भारत में ही बनाई गई है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था और आत्मविश्वास दोनों मजबूत हुए हैं. GRSE ने इस जहाज को बनाने में स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं और तकनीशियनों का सहारा लिया, जो ‘मेड इन इंडिया’ की ताकत को दिखाता है.

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