उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के बहुचर्चित स्याना हिंसा मामले में आखिरकार सात साल बाद अदालत का ऐतिहासिक फैसला सामने आया है. अदालत ने सोमवार को इस केस में 38 आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा का ऐलान किया है. इनमें हत्या के पांच आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा दी गई है, जबकि बाकी 33 दोषियों को बलवा, आगजनी और जानलेवा हमले जैसे अपराधों में सात साल की कैद की सजा सुनाई गई है.
एडीजे-12 गोपालजी की अदालत ने सबूतों, गवाहों और लंबी सुनवाई के बाद सोमवार को अपना फैसला सुनाया. हत्या के पांच दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जबकि बाकी 33 को सात साल की कैद के साथ आर्थिक जुर्माना भी लगाया गया. अदालत ने साफ किया कि हिंसा में शामिल सभी आरोपियों ने कानून व्यवस्था को चुनौती दी थी और अपने कृत्य से समाज में भय का माहौल बनाया
अदालत ने कहा कि दोषियों पर लगाए गए आर्थिक जुर्माने से वसूली का 80 फीसदी हिस्सा शहीद इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की पत्नी को दिया जाएगा. यह फैसला शहीद परिवार के लिए राहत की बड़ी खबर साबित हुआ है. फैसले के बाद बुलंदशहर में पुलिस और प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी. अदालत, उसके बाहर और कई इलाकों में पुलिस बल की तैनाती की गई है. स्थानीय लोगों और पुलिस महकमे में हलचल है.
3 दिसंबर 2018, हिंसा का खौफनाक दिन
बुलंदशहर के स्याना तहसील के चिंगरावठी गांव में 3 दिसंबर 2018 को गोमांस मिलने की बात सामने आने के बाद बवाल हो गया था. लोगों को एक आक्रोशित समूह ने जमकर उत्पात मचाया और चिंगरावठी पुलिस चौकी को आग के हवाले कर दिया. इस हिंसा के दौरान स्याना कोतवाली के तत्कालीन प्रभारी इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और एक युवक सुमित की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.
क्यों अहम था केस और कोर्ट का फैसला?
स्याना हिंसा केस केवल एक भीड़तंत्र की घटना नहीं थी, बल्कि इसने कानून व्यवस्था, धार्मिक तनाव और पुलिस की चुनौतियों को लेकर पूरे देश का ध्यान खींचा था. इंस्पेक्टर सुबोध की शहादत ने इसे और भी संवेदनशील बना दिया था. अब सात साल बाद आए इस फैसले से शहीद परिवार को न्याय की उम्मीद और समाज को एक सख्त संदेश देने की कोशिश की गई है कि कानून से बड़ा कोई नहीं है.