भारत के पूर्व स्पिनर रविचंद्रन अश्विन ने चोटिल खिलाड़ियों के स्थान पर विकल्प खिलाड़ी को टीम में शामिल करने के मुद्दे पर इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स की टिप्पणी को आड़े हाथों लिया है. अश्विन ने कहा कि स्टोक्स को बोलने से पहले सोच लेना चाहिए था, क्योंकि जल्द ही उन्हें उसी स्थिति का सामना करना पड़ा, जिसे उन्होंने ‘हास्यास्पद’ करार दिया था.
दरअसल, मैनचेस्टर में ड्रॉ हुए चौथे टेस्ट के पहले दिन भारत के विकेटकीपर-बल्लेबाज ऋषभ पंत रिटायर्ड हर्ट हो गए थे. स्कैन में उनके दाहिने पैर में फ्रैक्चर पाया गया, लेकिन इसके बावजूद वह अगले दिन मैदान पर लौटे और बल्लेबाजी की. इस घटना के बाद भारतीय टीम के कोच गौतम गंभीर ने टेस्ट क्रिकेट में चोटिल खिलाड़ियों के स्थान पर बदलाव की वकालत की थी. स्टोक्स ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए उसे ‘बेहद हास्यास्पद’ बताया था.
… स्टोक्स को खुद ऐसी ही परिस्थिति का सामना करना पड़ा
हालांकि ओवल में खेले गए पांचवें टेस्ट में स्टोक्स को खुद ऐसी ही परिस्थिति का सामना करना पड़ा, जब इंग्लैंड के ऑलराउंडर क्रिस वोक्स के कंधे में चोट लग गई. फ्रैक्चर के बावजूद वोक्स अंतिम दिन बल्लेबाजी करने उतरे, जबकि इंग्लैंड की टीम अपने 9 विकेट गंवा चुकी थी और उसे जीत के लिए 20 से भी कम रनों की जरूरत थी.
Here comes Rishabh Pant…
A classy reception from the Emirates Old Trafford crowd 👏 pic.twitter.com/vBwSuKdFcW
— England Cricket (@englandcricket) July 24, 2025
‘आपके कर्म आपको तुरंत ही प्रभावित करते हैं’
अपने यूट्यूब चैनल ‘ऐश की बात’ पर अश्विन ने तीखा प्रहार करते हुए कहा, ‘तमिल में एक कहावत है- आपके कर्म आपको तुरंत ही प्रभावित करते हैं. आप जैसा बोते हैं, वैसा ही फल मिलता है.’
अश्विन ने कहा, ‘पंत की चोट को लेकर गंभीर ने जो सुझाव दिया, वह काफी तार्किक था. लेकिन स्टोक्स ने इसे मजाक में उड़ा दिया. मैं उनके खेल और नेतृत्व क्षमता का प्रशंसक हूं, लेकिन उनसे एक संतुलित और विचारशील प्रतिक्रिया की उम्मीद थी.’
अश्विन ने इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन की उस टिप्पणी का भी उल्लेख किया जिसमें वॉन ने इस मुद्दे पर क्रिकेट के नियमों में बदलाव की जरूरत बताई थी.
उन्होंने कहा, ‘माइकल वॉन का मानना है कि गंभीर चोट की स्थिति में टीम को विकल्प देने पर विचार होना चाहिए. स्टोक्स को यह सोचना चाहिए था कि अगर उनकी टीम में पंत जैसा कोई खिलाड़ी होता और वह चोटिल हो जाता, तो क्या वे बदलाव नहीं चाहते?’
अंत में अश्विन ने कहा, ‘आप अपनी राय रखने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन सार्वजनिक मंच पर ‘मजाक’ और ‘बेतुका’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल सम्मानजनक नहीं माना जा सकता. बोलने से पहले सोचिए, क्योंकि कर्मों का हिसाब जल्द होता है.’