“भगवान रामलला के दर्शन आसानी से हो जाते हैं… लेकिन सरकारी फाइलें अब भी अफसरों की टेबल पर अटकी रहती हैं“- राज्यपाल आनंदीबेन पटेल

अयोध्या: रामलला की नगरी अयोध्या में उस वक्त सन्नाटा पसर गया जब उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने नौकरशाही पर करारा वार किया। मौका था सीएसआर कॉन्क्लेव 2025, मंच था सम्मान का – लेकिन राज्यपाल के शब्दों ने व्यवस्था के पुराने जाले झाड़ दिए.

राज्यपाल ने तंज कसा:

“भगवान रामलला के दर्शन आसानी से हो जाते हैं, लेकिन सरकारी फाइलें अब भी अफसरों की टेबल पर अटकी रहती हैं.” ये वाक्य मात्र एक टिप्पणी नहीं, बल्कि एक आइना था उस सिस्टम के लिए, जहां आम आदमी दिन-रात चक्कर काटता है लेकिन फाइलें मंज़ूर नहीं होतीं.

फाइलों की पदयात्रा, अफसरों की परीक्षा

राज्यपाल ने बताया कि जब कोई फाइल पहली टेबल तक पहुंचती है, तो अफसर उसमें कमियां खोजने लगते हैं। इसके बाद फाइल दूसरी, तीसरी और चौथी टेबल तक धक्के खाती है, पर मंज़ूरी नहीं मिलती। उन्होंने कहा, “जो पहली टेबल पर बैठा है, वही सारी खामियां एक बार में बता दे तो जनता भटकने से बच जाएगी.”

ये बात जितनी अयोध्या के अफसरों के लिए थी, उतनी ही लखनऊ और दिल्ली के दफ्तरों के लिए भी एक साफ़ सिग्नल थी.

70 आंगनबाड़ी भवन शिलान्यास – पर फोकस अफसरशाही पर

कार्यक्रम के दौरान आनंदीबेन पटेल ने 70 नए आंगनबाड़ी भवनों का शिलान्यास किया और 1000 प्री-स्कूल किट्स की योजना को हरी झंडी दी. लेकिन चर्चा उन योजनाओं से ज़्यादा उनके बयान ने बटोरी, जिसमें उन्होंने नौकरशाही की ढीली कार्यशैली पर सवाल उठाए.

मिठास में लिपटा कड़वा सच

राज्यपाल ने अपनी बात बेहद शालीनता से रखी, लेकिन उसमें छिपा व्यंग्य इतना धारदार था कि अफसरशाही को चुभ गया. उन्होंने बताया कि फाइलें केवल चलती नहीं, वो ‘तीर्थ’ करती हैं. टेबल से टेबल, सेक्शन से सेक्शन.

यह बयान एक तरह से उस ‘सिस्टम एक्स-रे’ की तरह था, जो दिखाता है कि फाइलें जितनी लंबी यात्रा करती हैं, जनता उतनी ही उम्मीदें खोती जाती है.

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