भाई-बहन का सबसे बड़ा त्योहार रक्षाबंधन अब बस दो दिन दूर है. इस बीच दिल्ली और देश के कई शहरों के बाजारों में खरीददारी को लेकर लोगों की भीड़ लगी हुई है. त्योहार को लेकर ट्रेडर्स की संस्था कॉन्फेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने अनुमान लगाया है कि इस साल राखी पर देशभर में करीब 17,000 करोड़ रुपए का कारोबार होगा.
इसके साथ ही मिठाइयां, फल और उपहारों पर करीब 4,000 करोड़ रुपए खर्च होने की भी उम्मीद है. इस बार बाजार में मिलने वाली राखियों में काफी कुछ खास देखने को मिल रहा है. राखियों में कई नए-नए डिज़ाइन और थीम भी देखने को मिल रहे हैं.
बाजारों में दिखी आत्मनिर्भर भारत की झलक
खास बात यह है कि इस बार बाजार में चीनी बनी राखी या त्योहार के सामान बिल्कुल नहीं मिल रहे हैं. इस साल राखी का त्योहार केवल भाई-बहन के प्यार का जश्न नहीं है, बल्कि इसमें देशभक्ति और आत्मनिर्भर भारत की भावना भी शामिल है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान देश की सेना ने अपनी बहादुरी दिखाई. 9 अगस्त को ही भारत छोड़ो आंदोलन की याद भी मनाई जाती है और राखी का त्योहार भी इस बार इसी दिन है. इसलिए इस बार बाजारों में राखी को लेकर एक अलग जोश और देशभक्ति की भावना नजर आ रही है.
चांदनी चौक से सांसद और कॉन्फेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि राखी इस बार देशभक्ति और भाई-बहन के प्रेम दोनों का प्रतीक होगी. खासतौर पर सैनिकों को समर्पित राखियों की भी मांग बहुत बढ़ी है. शहर-शहर में फौजियों को राखी बांधकर उनका सम्मान भी किया जा रहा है.
राखियों में नए-नए डिज़ाइन और थीम की धूम
इस बार बाजार में राखियों के कई नए और खास डिज़ाइन देखे जा रहे हैं. पारंपरिक राखियों के साथ-साथ वोकल फॉर लोकल से लेकर डिजिटल राखी, मोदी राखी, आत्मनिर्भर भारत राखी, जयहिंद राखी, और वंदे मातरम राखी जैसी कई थीम-बेस्ड राखियां खूब बिक रही हैं. इसके अलावा, पर्यावरण के प्रति जागरूकता के चलते इको-फ्रेंडली राखियों का भी क्रेज बढ़ा है. मिट्टी, बीज, खादी, बांस और कपास जैसी प्राकृतिक चीजों से बनी राखियां लोगों को बहुत पसंद आ रही हैं.
विभिन्न संस्कृतियों और कलाओं से जुड़ी राखियां
इस बार राखियों में देश की विभिन्न संस्कृतियों और कलाओं को भी जगह मिली है. उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ की कोसा राखी, कोलकाता की जूट राखी, मुंबई की रेशम राखी, नागपुर की खादी राखी, जयपुर की सांगानेरी राखी, पुणे की बीज राखी, झारखंड की बांस राखी, असम की चाय पत्ती राखी और बिहार की मधुबनी राखी काफी लोकप्रिय हो रही हैं.
प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि यह राखियां न केवल सुंदर दिखती हैं, बल्कि इनसे स्थानीय महिला उद्यमियों, स्वयं सहायता समूहों और कारीगरों को भी मदद मिलती है. यह महिला सशक्तिकरण और स्थानीय उद्योग को बढ़ावा देने का एक अच्छा जरिया बन रहा है. अब भारतीय उपभोक्ता त्योहारों को गर्व और आत्मसम्मान के साथ मनाने लगे हैं. वे मेक इन इंडिया के उत्पादों को पसंद कर रहे हैं और हर घर तक यह भावना पहुंच रही है.