डीडवाना-कुचामन जिले के नावां उपखण्ड क्षेत्र में गुरुवार को सड़क की खस्ता हालत ने एक मासूम की जान ले ली. जानकारी के मुताबिक राजस्व राज्य मंत्री विजय सिंह चौधरी के गृह निर्वाचन क्षेत्र नावां के खाखड़की गांव की एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा होने पर एम्बुलेंस से अस्पताल ले जाया जा रहा था, लेकिन रास्ते की भयावह स्थिति ने ऐसा कहर ढाया कि महिला को अस्पताल पहुंचने से पहले ही रास्ते में प्रसव हो गया. बात यही खत्म नहीं हुई ,बल्कि जन्म के कुछ ही मिनटों बाद मासूम की मौत हो गई. यह घटना क्षेत्र के लोगों के लिए गहरा सदमा बनकर आई है और प्रशासनिक उदासीनता पर बड़ा सवाल खड़ा कर रही है.
जर्जर सड़क बनी मौत की वजह
नावां से खाखड़की के बीच 12 किलोमीटर की दूरी लंबे समय से बदहाल पड़ी है. यह मार्ग गड्ढों से इतना भर चुका है कि वाहन चलाना किसी जोखिम से कम नहीं. खासतौर पर बारिश के दिनों में सड़क जलभराव और गहराई लिए खतरनाक गड्ढों से और भी जानलेवा हो जाती है. ग्रामीणों का कहना है कि वर्षों से इस रास्ते के सुधरने की आस लगाए बैठे हैं, लेकिन न तो प्रशासन की नजर इस पर गई और न ही सरकार के किसी प्रतिनिधि की संवेदनशीलता जागी.
एम्बुलेंस में हुआ प्रसव, रास्ते ने नहीं दिया समय
प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिला विमला देवी पत्नी रमेश कुमार को एम्बुलेंस से नावां उपजिला चिकित्सालय ले जाया जा रहा था. लेकिन जैसे ही एम्बुलेंस खाखड़की से करीब 4 किलोमीटर चली, रास्ते में गड्ढों की वजह से झटके इतने तेज लगे कि महिला को अत्यधिक पीड़ा होने लगी. एम्बुलेंस चालक मदनलाल को वाहन रोकना पड़ा और वहीं मजबूरी में नर्सिंगकर्मी ललित कुमार की मदद से डिलेवरी करवाई गई. महिला ने एम्बुलेंस में ही एक पुत्र को जन्म दिया.
इलाज से पहले थम गई मासूम की सांसें
जन्म के तुरंत बाद ही नवजात की हालत गंभीर हो गई. उसे नावां चिकित्सालय लाया गया, लेकिन वहां डॉक्टरों ने उसे गंभीर हालत में कुचामन रेफर कर दिया. कुचामन पहुंचने के दौरान ही बच्चे की मौत हो चुकी थी. पिता रमेश कुमार ने बताया कि सड़क की वजह से एम्बुलेंस समय पर नहीं पहुंच सकी और इलाज से पहले ही बेटे ने दम तोड़ दिया.
ग्रामीणों में आक्रोश, सरकार से मांगा जवाब
इस हृदयविदारक घटना के बाद खाखड़की समेत आसपास के ग्रामीणों में भारी आक्रोश है. गांव के प्रभुराम बुगालिया ने बताया कि इस मार्ग की मरम्मत के लिए कई बार प्रशासन से गुहार लगाई गई, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिले. अब जब एक जान गई है, तब भी क्या कोई कार्रवाई होगी? यह सवाल पूरे गांव में गूंज रहा है। ग्रामीणों ने इस बार उनकी सुनवाई नहीं होने पर उग्र आंदोलन करने की चेतावनी दी है
एम्बुलेंस चालक बोले ऐसे रास्तों पर मरीज को ले जाना खतरे से खाली नहीं
एम्बुलेंस चालकों का कहना है कि इस तरह की सड़कों पर मरीजों को सुरक्षित अस्पताल पहुंचाना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. न केवल मरीज को दर्द झेलना पड़ता है बल्कि कई बार जान तक चली जाती है. ऐसे में प्रशासन को कम से कम जीवन रक्षक रास्तों को प्राथमिकता से दुरुस्त करना चाहिए.
निष्क्रियता का परिणाम एक जान की कीमत
यह घटना सिर्फ एक बच्चे की मौत नहीं है, बल्कि शासन और प्रशासन की लापरवाही का जीता-जागता प्रमाण है. एक मासूम ने जन्म के साथ ही दम तोड़ दिया क्योंकि सरकार ने एक सड़क की मरम्मत को जरूरी नहीं समझा.
अब सवाल यह है कि क्या इस दर्दनाक हादसे के बाद भी जिम्मेदार जागेंगे? या फिर अगली मौत का इंतजार करेंगे?