पिंक’, ‘सरदार उधम’, ‘विक्की डोनर’ और ‘पीकू’ जैसी फिल्म बनाने वाले शूजित सरकार इन दिनों नए रोल निभाने में काफी बिजी हैं. वह लगातार दूसरे साल इंडियन फिल्म फेस्टिवल ऑफ मेलबर्न जूरी मेंबर में शामिल हुए हैं. यहां उन्हें बेस्ट शॉर्ट फिल्मों को सिलेक्ट करने का काम सौंपा गया है. इस बीच उन्होंने अपने जूरी एक्सपीरियंस और नेशनल फिल्म अवॉर्ड पर खुलकर बात की है.
फिल्म मेकर शूजित ने ये स्वीकार किया कि वह आमतौर पर जूरी में भाग लेने से बचते हैं. लेकिन IFFM उनके लिए एक स्पेशल जगह रखता है. उन्होंने कहा, ‘IFFM मेरे लिए बहुत खास है.ऑर्गनाइजर मेरे दोस्त हैं और यह विशेष महोत्सव लगभग एक पारिवारिक समारोह जैसा है. मैं आमतौर पर जूरी में भाग नहीं लेता और न ही जज के रूप में. लेकिन इस बार मैंने एक अपवाद रखा है.’
फिल्म सिलेक्शन पर क्या बोले शूजित?
हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए शूजित ने कहा, ‘फिल्मों का रिव्यू करना कोई आसान काम नहीं है. ये शुरू करने से पहले हम सभी को बताते हैं कि कुछ खास पहलू हैं जिन पर हमें ध्यान देना चाहिए. कुछ तकनीकी पहलू होते हैं जिनसे आप वाकई आर्ट का रिव्यू कर सकते हैं. फिर, आपको उस फिल्म का जश्न मनाना चाहिए, जो वाकई में बदलाव लाती है. इसके बाद डायरेक्टर की आवाज और नजरिया बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. आप ऐसी फिल्में देखते हैं जो बहुत बड़ा सामाजिक बदलाव लाती हैं और जिनका प्रभाव लंबे समय तक रहता है. बेशक, सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग, डायरेक्शन, एक्टर्स हर चीज के रिफरेंस में तकनीकी पहलुओं पर गौर करना जरूरी है.’
नेशनल फिल्म अवॉर्ड पर क्या कहा?
वहीं शूजित सरकार से हाल ही में नेशनल फिल्म अवॉर्ड को लेकर हुई चर्चा के बारे में भी पूछा गया. जहां शाहरुख खान ने बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड जीता और द केरल स्टोरी को बेस्ट सिनेमैटोग्राफी का अवॉर्ड मिला. कई लोगों ने इस पर सवाल उठाया. इस पर शूजित ने कहा, ‘मुझे लगता है कि इस पर बहस करने का कोई मतलब नहीं है. आप इसे जूरी पर छोड़ दीजिए.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हम कई बातों पर असहमत हो सकते हैं, लेकिन आखिरकार, जो मायने रखता है वह यह है कि जूरी कौन है? क्योंकि वह जूरी का आखिरी फैसला होता है. आप इस पर सवाल नहीं उठा सकते कि उन्होंने क्या पुरस्कार दिया है. मुझे लगता है कि हम उनके शुरू करने से पहले ही यह सवाल उठा लेंगे, जूरी कौन है, वो कितने सेंसेटिव हैं? तो बेहतर होगा.’
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