जो लोग कम बजट में अपना घर लेने का सपना देख रहे थे, उनके लिए एक बुरी खबर है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ सामानों पर नए टैक्स (टैरिफ) लगाने का फैसला किया है, जिसका सीधा असर भारत में बन रहे सस्ते घरों पर पड़ेगा. इन घरों को बनाने में जो कच्चा माल लगता है, जैसे कि स्टील, लोहा, और कुछ इलेक्ट्रॉनिक सामान, वो अब महंगा हो जाएगा. इस महंगाई की वजह से मकान बनाने की लागत बढ़ जाएगी, और आखिरकार ये घर खरीदने वालों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी. अमेरिका द्वारा 50% तक टैरिफ लगाने के बाद, एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर इन व्यापारिक फैसलों को जल्दी नहीं बदला गया तो इसका बहुत बुरा असर भारत के रियल एस्टेट सेक्टर पर पड़ेगा.
ANAROCK Group के कार्यकारी निदेशक, डॉ. प्रशांत ठाकुर ने इस बारे में अपनी राय देते हुए कहा, “45 लाख रुपए या उससे कम कीमत वाले ये घर, कोरोना महामारी के बाद से ही बुरी तरह प्रभावित थे और अभी भी मुश्किलों से बाहर नहीं निकल पाए हैं. अब ट्रंप के ये सख्त टैक्स इस सेगमेंट की रही-सही उम्मीद को भी खत्म कर देंगे.”
ठाकुर ने यह भी बताया कि इस सेगमेंट की ग्रोथ सीधे तौर पर भारत के छोटे और मझोले उद्योगों (MSMEs और SMEs) पर निर्भर करती है, क्योंकि ये उद्योग ही घरों की मांग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
सस्ती आवास योजना (Affordable Housing) पर संकट
ANAROCK के आंकड़ों के अनुसार, 2025 की पहली छमाही में, भारत के शीर्ष सात शहरों में कुल 1.90 लाख घर बिके, जिनमें से सस्ती आवास योजनाओं का हिस्सा सिर्फ 18% यानी लगभग 34,565 यूनिट रहा. यह 2019 के 38% के मुकाबले एक बहुत बड़ी गिरावट है, जो दिखाता है कि कोरोना महामारी के बाद से यह सेक्टर अभी तक पटरी पर नहीं आ पाया है.
आपूर्ति में भारी कमी
भारत की करीब 17.76% आबादी (1.46 अरब लोग) सस्ती आवास योजनाओं पर निर्भर करती है, लेकिन इनकी आपूर्ति में भी भारी कमी आई है. 2019 में, कुल लॉन्च हुए घरों में सस्ती आवास योजनाएं 40% थीं, जो अब 2025 की पहली छमाही में घटकर सिर्फ 12% रह गई हैं.
MSME सेक्टर की भूमिका
MSME सेक्टर, जो भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में करीब 30% और निर्यात में 45% से अधिक का योगदान देता है. यह सेक्टर हाउसिंग मार्केट में मांग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
वित्तीय वर्ष 2020-21 से 2024-25 के बीच MSME सेक्टर से होने वाला निर्यात 228% बढ़कर 52,849 से 173,350 हो गया है. इस शानदार ग्रोथ के बावजूद, डॉ. प्रशांत ठाकुर का कहना है कि, “इन टैरिफ की वजह से MSME सेक्टर के कर्मचारियों की भविष्य की कमाई पर असर पड़ेगा, जिससे सस्ती आवास की मांग प्रभावित हो सकती है.
हाउसिंग फाइनेंस और डेवलपर्स पर भी असर
ठाकुर ने यह भी बताया कि मांग में संभावित कमी से हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को भी नुकसान होगा. इससे कर्जों पर चूक (defaults) का जोखिम बढ़ेगा और नए कर्ज कम दिए जाएंगे. उन्होंने आगे कहा, “मांग में गिरावट से डेवलपर्स भी नए प्रोजेक्ट लॉन्च करने से हिचकिचाएंगे. बिक्री कम होने से उन्हें काम करने के लिए पूंजी की कमी का सामना करना पड़ेगा. वैसे भी, महामारी के बाद से वे इनपुट लागतों की महंगाई से जूझ रहे हैं.’
ANAROCK की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन मुश्किलों को दूर करने के लिए सरकार का कदम उठाना बेहद जरूरी है. सस्ती आवास योजना को स्थिर करने के लिए सरकार को कुछ खास कदम उठाने होंगे. सरकार को एक ऐसी नीति बनानी होगी जो इन चुनौतियों का मुकाबला कर सके. आर्थिक सुरक्षा के लिए कुछ खास उपाय करने होंगे, ताकि सेक्टर को और नुकसान न हो. घर खरीदने वालों को भी मदद देनी होगी, ताकि वे घर खरीदने का अपना सपना पूरा कर सकें.