टोंक के मालपुरा दंगा मामले से जुड़े एक केस में आज (मंगलवार) सांप्रदायिक दंगा मामलों की विशेष अदालत ने सभी 13 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है।
अदालत ने अपने फैसले में पुलिस की जांच पर सवाल खड़े किए। अदालत ने कहा- इस मामले में तीन जांच अधिकारी रहे। किसी ने भी मामले की ठीक तरह से जांच नहीं की।
आरोपियों के वकील वीके बाली और सोनल दाधीच ने बताया- इस मामले में सभी गवाहों के बयान विरोधाभासी थे। गवाहों ने कहा- आरोपियों के चेहरे ढके हुए थे।
उन्होंने बताया कि पुलिस ने वह हथियार भी बरामद नहीं किया, जिससे हत्या होना बताया गया।
हमने कोर्ट से कहा- घटना के समय इलाके में धारा 144 लगी हुई थी। पुलिस ने जो गवाह पेश किए, वो घटना के समय मौजूद नहीं थे।
कोर्ट ने भी माना कि पुलिस ने एक आरोपी को छोड़कर किसी की भी शिनाख्त परेड नहीं करवाई।
इस मामले में शहजाद ने मालपुरा थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई थी कि समुदाय विशेष के लोगो ने उसके भाई मोहम्मद सलीम और चाचा मोहम्मद अली की हत्या की है।
22 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था पीड़ित पक्ष के वकील पुरुषोत्तम बनवाड़ा ने बताया- साल 2000 में मालपुरा में दो संप्रदायों के बीच दंगा हुआ था। इसमें एक पक्ष से हरिराम और कैलाश माली की मौत हो गई थी।
दूसरे पक्ष से भी चार लोगों की मौत हुई थी। दोनों पक्षों की ओर से मामले दर्ज कराए गए थे। इसमें कुल 22 आरोपी थे। 7 आरोपी 2016 में ही हाईकोर्ट से बरी हो चुके हैं। एक आरोपी की मौत हो चुकी है। एक आरोपी के नाबालिग होने के कारण उसका मामला जुवेनाइल बोर्ड में चल रहा है। 13 आरोपी बचे थे।