सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में सभी आवारा कुत्तों को 8 सप्ताह के भीतर शेल्टर होम में भेजने का आदेश दिया है. इस आदेश को लेकर विरोध होना शुरू हो गया. राजनीति से जुड़े नेताओं से लेकर पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) ने विरोध जताया है. साथ ही साथ में विरोध प्रदर्शन भी किया गया, जिसके बाद कुछ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया. यही नहीं, तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यानी सीजेआई को पत्र लिखा है.
सुप्रीम कोर्ट कहना है कि आवारा कुत्तों को सड़कों पर वापस नहीं भेजा जाना चाहिए. जहां रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) ने इस आदेश का स्वागत किया, वहीं पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया कि नगर निकायों के पास इस बड़े काम को करने के लिए भूमि और धन की कमी है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी सवाल खड़े किए हैं.
टीएमसी नेता ने CJI को पत्र लिखकर क्या कहा?
साकेत गोखले ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘मैंने आज (12 अगस्त) सुबह भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक अपील पत्र लिखा है. ये पत्र दिल्ली में आवारा कुत्तों के संबंध में कल सुप्रीम कोर्ट की ओर से पारित निर्देशों पर रोक लगाने और एक बड़ी पीठ द्वारा आदेश की समीक्षा के लिए लिखा गया है. आवारा कुत्तों के प्रबंधन और लोगों की सुरक्षा का मुद्दा निश्चित रूप से चिंता का विषय है. हालांकि, यह ऐसा विषय नहीं है जिसका समाधान न्यायपालिका की ओर से बिना किसी व्यापक परामर्श प्रक्रिया के पारित मनमाने आदेशों से हो सके. साथ ही, असहाय पशुओं पर बेतहाशा क्रूरता करना कभी भी समाधान नहीं हो सकता.’
उन्होंने कहा, ‘आवारा कुत्तों की समस्या और उनकी नसबंदी व जनसंख्या नियंत्रण के लिए देश में पर्याप्त कानून हैं. मैं मानता हूं कि आम लोगों के कल्याण और सुरक्षा के संदर्भ में यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है. इन कानूनों को लागू करने और अपना काम करने में नगर पालिका अधिकारियों की विफलता न्यायपालिका के लिए क्रूर और अमानवीय निर्देश देने का कारण नहीं बन सकती और न ही बननी चाहिए.’
बेजुबान जीव कोई समस्या नहीं- राहुल गांधी
लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा, ‘दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को हटाने का सुप्रीम कोर्ट का निर्देश दशकों से चली आ रही मानवीय और विज्ञान-समर्थित नीति से एक कदम पीछे है. ये बेजुबान जीव कोई समस्या नहीं हैं जिन्हें मिटाया जा सके. शेल्टर, नसबंदी, वैक्सीनेशन और कम्युनिटी केयर के जरिए बिना किसी क्रूरता के सड़कों को सुरक्षित रख सकते हैं. कुत्तों को हटाना क्रूर, अदूरदर्शी है और हमारी करुणा को खत्म करता है. हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जन सुरक्षा और पशु कल्याण साथ-साथ चलें.’
गुस्से में लिया गया है फैसला- मेनका गांधी
एनिमल एक्टिविस्ट मेनका गांधी ने कहा, ‘यह फैसला स्वतः संज्ञान से लिया गया है यानी किसी ने शिकायत नहीं की, जज ने खुद ही इस पर विचार किया. हमें तो पहले से ही ऐसी ही उम्मीद थी. अब, अगर इस आदेश का पालन किया जाता है, तो दिल्ली में तीन लाख कुत्तों को पकड़कर सेंटर्स में रखना होगा. दिल्ली सरकार को 1000-2000 सेंटर बनाने होंगे क्योंकि बहुत सारे कुत्ते आपस में लड़ेंगे. उन्हें पहले जमीन चाहिए होगी, फिर आठ हफ्तों के भीतर कम से कम 4-5 करोड़ रुपए की लागत से सुविधाएं बनानी होंगी, जिनमें देखभाल करने वाले, खाना खिलाने वाले और भागने से रोकने के लिए चौकीदार भी होंगे.
उन्होंने कहा, ‘इस फैसले में तार्किक सोच का अभाव है और यह गुस्से में लिया गया है. हैरानी की बात यह है कि यह आदेश एक अखबार में छपी खबर पर आधारित है, जिसमें कुत्तों की ओर से एक बच्चे को मारे जाने की बात कही गई है, जबकि परिवार ने पुष्टि की है कि बच्चे की मौत मेनिन्जाइटिस से हुई थी.’
क्या बोलीं रवीना टंडन?
बॉलीवुड अभिनेत्री रवीना टंडन ने कहा कि आवारा पशुओं की बढ़ती आबादी उनकी गलती नहीं है. इसका मतलब यह है कि स्थानीय निकाय (लोकल बॉडी) टीकाकरण और नसबंदी अभियान नहीं चला रहे हैं. ये स्थानीय निकाय अपने समुदायों में आवारा पशुओं के लिए जिम्मेदार हैं और नसबंदी समय की मांग है.
पीपल फॉर एनिमल्स के गौरव गुप्ता खराब इंफ्रास्ट्रक्चर की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘हमारे पास पूरे शहर में गौशालाएं हैं, लेकिन क्या आपने उनकी हालत देखी है? अगर सैकड़ों कुत्तों को एक ही शेल्टर में ठूंस दिया जाए, तो हम उनके उत्पात को कैसे रोक पाएंगे? इसमें तर्क का अभाव है. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा गया था कि हर जानवर को आजादी से जीने का अधिकार है. क्या यह उसके खिलाफ नहीं है?’
रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएश कर रहे आदेश का स्वागत
हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस आदेश की रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों ने सराहना की है. विवेक विहार आरडब्ल्यूए के अध्यक्ष आनंद गोयल का तर्क है कि इसकी निंदा करने वालों को अपने प्रियजनों को काटने वाले आवारा कुत्ते से नहीं जूझना पड़ा है. उन्होंने कहा, ‘कुत्तों को शेल्टरों में रखा जाना सड़कों पर कारों से कुचले जाने से बेहतर है.’
पेटा ने बताया सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अव्यावहारिक
पेटा इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अव्यावहारिक, अतार्किक और गैरकानूनी करार दिया. पेटा इंडिया एडवोकेसी एसोसिएट शौर्य अग्रवाल ने कहा कि पशु जन्म नियंत्रण नियमों के अनुसार यह आदेश अवैध भी है. दिल्ली सरकार के पास इन नसबंदी कार्यक्रमों को लागू करने और एबीसी नियमों को लागू करने के लिए 24 साल का समय था. दिल्ली में 10 लाख कुत्ते हैं. उन्हें शेल्टर में रखना अव्यावहारिक है. यह बहुत मुश्किल है. इससे अराजकता और समस्याएं पैदा होंगी.
उन्होंने कहा कि आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाना अमानवीय और अपने आप में क्रूरता. शेल्टरों के अंदर की स्थिति बहुत खराब होने वाली है. हम अपने सभी कानूनी रास्ते तलाश रहे हैं और पहले भी हम दिल्ली सरकार से मिल चुके हैं. उनसे एबीसी नियमों और शहर में नसबंदी कार्यक्रमों को ठीक से लागू करने का आग्रह कर चुके हैं.
दिल्ली में हुआ प्रदर्शन
दिल्ली में बीते दिन इंडिया गेट पर एक्टिविस्ट, बचावकर्मियों, देखभाल करने वालों और डोग लवर्स ने प्रदर्शन किया. इस दौरान पुलिस ने उन्हें रोका, लेकिन विरोध तेज करने पर पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया. हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया.
ह्यूमेन वर्ल्ड फॉर एनिमल्स इंडिया की मैनेजिंग डायरेक्टर आलोकपर्णा सेनगुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भ्रामक बताया. उन्होंने कहा, ‘कुत्तों को दूसरे जगह भेजने से समस्या कहीं और ट्रांसफर हो जाती है. पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने जैसी रणनीति ही वैज्ञानिक रूप से सिद्ध समाधान हैं.’