दलित-आदिवासी (एससी और एसटी) शिक्षकों की नियुक्ति और प्रमोशन का मामला हाल ही में काफी सुर्खियों में आया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस मामले को उठाया था. इसी के बाद अब एक प्रमुख संसदीय पैनल ने अहम बातें सामने रखी. पैनल ने कहा कि नॉट फाउंड सूटेबल (NFS) टैग का इस्तेमाल एससी और एसटी शिक्षकों को नियुक्तियों और प्रमोशन में उन्हें मौकों से दूर करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. पैनल ने माना कि यह गलत तरीका चल रहा है और कहा कि यूनिवर्सिटी में टीचर्स की भर्ती करते समय ज्यादा समझदारी और न्यायपूर्ण तरीके से फैसला किया जाए.
संसद की अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण समिति ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में की गई नियुक्तियों की समीक्षा के दौरान एक अहम टिप्पणी की. समिति ने कहा कि यह मामला अब एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है. समिति ने बताया कि जब उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के एससी/एसटी शिक्षकों के कल्याण संघ से बातचीत की, तो एक गंभीर समस्या सामने आ, आरक्षित पदों पर भी एससी/एसटी शिक्षकों को एनएफएस (नॉट फाउंड सूटेबल यानी उपयुक्त नहीं पाए गए) घोषित किया जा रहा है. इस मुद्दे का जिक्र समिति ने संसद के मौजूदा मानसून सत्र में पेश अपनी रिपोर्ट में किया.
समिति ने NFS के इस्तेमाल पर जताई चिंता
समिति ने कहा कि योग्य एससी/एसटी टीचर्स को नियुक्ति और प्रमोशन के अवसरों से वंचित करने के लिए “एनएफएस” (नॉट फाउंड सूटेबल) शब्द का इस्तेमाल करना वो कड़े शब्दों में निंदा करती है. समिति का मानना है कि एससी/एसटी उम्मीदवारों को “एनएफएस” घोषित करना न सिर्फ अनुचित है, बल्कि यह योग्य और हकदार एससी/एसटी उम्मीदवारों की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाता है.
यह समिति बीजेपी सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते की अध्यक्षता में काम कर रही है. दरअसल, एनएफएस विवाद इस आरोप के इर्द-गिर्द घूम रहा है कि शैक्षणिक संस्थानों में अधिकारी, दलितों और आदिवासियों को पदों पर उचित रोज़गार अवसर देने से बचने के लिए उनकी उम्मीदवारी को ‘उपयुक्त नहीं’ बताकर खारिज कर रहे हैं.
राहुल गांधी ने उठाया मुद्दा
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हाल ही में केंद्रीय यूनिवर्सिटी में एससी/एसटी कोटे के तहत बड़ी संख्या में खाली पदों का मुद्दा उठाया था. उन्होंने बीजेपी सरकार पर इसको लेकर आरोप भी लगाया कि “एनएफएस” का इस्तेमाल करके शिक्षकों को पदों से दूर रखा जा रहा है.
राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा- “एनएफएस अब नया मनुवाद है. एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों के योग्य उम्मीदवारों को जानबूझकर अनुपयुक्त बताया जा रहा है ताकि उन्हें शिक्षा और नेतृत्व से दूर रखा जाए. उनकी इस टिप्पणी पर बीजेपी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और कांग्रेस पर ही पिछड़े वर्गों को हाशिए पर धकेलने का आरोप लगाया.
अब संसदीय समिति ने कहा है कि आज के समय में ऐसे एससी/एसटी उम्मीदवारों की कोई कमी नहीं है, जिनके पास एजुकेशन के क्षेत्र में बेहतरीन योग्यता और उपलब्धियां हैं. समिति ने सिफारिश की कि एससी/एसटी उम्मीदवारों का मूल्यांकन सिर्फ उनकी काबिलीयत और योग्यता के आधार पर किया जाए. समिति ने यह भी कहा कि एससी/एसटी उम्मीदवारों को पर्याप्त अवसर दिए जाने चाहिए.