लोकसभा में स्वतंत्र सांसद उमेश पटेल ने संसद सत्र के दौरान हंगामे और कामकाज ठप रहने पर सांसदों से ही खर्च की भरपाई कराने की मांग उठाई है। उन्होंने कहा कि मानसून सत्र के दौरान महज 37 घंटे ही चर्चा हो पाई, जबकि इसके लिए करोड़ों रुपए जनता के टैक्स से खर्च किए गए।
उमेश पटेल का कहना है कि संसद चलाने में जनता का पैसा खर्च होता है और अगर सांसद बहस व चर्चा की बजाय सिर्फ हंगामे में समय बर्बाद करेंगे तो इसका बोझ क्यों जनता उठाए? उन्होंने स्पष्ट कहा कि जब सांसदों की वजह से सत्र का समय व्यर्थ हो रहा है तो उनकी सैलरी और भत्तों में कटौती होनी चाहिए।
गौरतलब है कि मानसून सत्र के दौरान लगातार विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच टकराव देखने को मिला। कई दिनों तक शोरगुल और नारेबाजी के कारण सदन की कार्यवाही बाधित रही। सरकारी विधेयक और महत्वपूर्ण चर्चाएं अधर में रह गईं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पूरे सत्र में 200 घंटे से ज्यादा कामकाज होना चाहिए था, लेकिन हंगामे के चलते चर्चा महज 37 घंटे ही चल सकी।
उमेश पटेल ने लोकसभा अध्यक्ष से अपील की कि भविष्य में अगर ऐसा दोहराया जाता है तो सांसदों से उनकी जिम्मेदारी तय की जाए। उन्होंने कहा कि “संसद देश के करोड़ों लोगों की उम्मीदों का केंद्र है। यहां सिर्फ हंगामा करके बाहर चले जाना लोकतंत्र का मजाक है।”
इस बीच, जनता के बीच भी इस मुद्दे पर नाराजगी देखने को मिल रही है। सोशल मीडिया पर कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब सांसद काम ही नहीं कर रहे तो उन्हें वेतन और भत्ते क्यों दिए जा रहे हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मांग पर संसद की कार्यवाही में कोई ठोस कदम उठता है या यह केवल एक बयान बनकर रह जाता है।