पिठोरी अमावस्या पर आज इस विधि से करें पितरों का श्राद्ध, बनी रहेगी सुख-संपन्नता 

भाद्रपद माह की अमावस्या को पिठोरी अमावस्या कहा जाता है. शास्त्रों में इसका नाम कुशग्रहणी अमावस्या या कुशोत्पाटनी अमावस्या भी बताया गया है. इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और विशेष पूजा अर्चना की जाती है. कहते हैं कि पिठोरी अमावस्या पर पितरों का विधिवत श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और पितृ पूरे साल प्रसन्न रहते हैं. इस दिन माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु और सुख संपन्नता के लिए व्रत-उपवास भी रखती हैं.

पिठोरी अमावस्या का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पिठोरी अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध करने की परंपरा है. इस दिन पितरों का श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होतें हैं और पूर्वजों का आशीर्वाद हम पर बना रहता है. पिठोरी शब्द का अर्थ होता है- आटे से बने चित्र या मूर्तियां. इस दिन महिलाएं आटे से देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनाकर उनकी पूजा करती हैं और घर की खुशहाली की कामना करती हैं.

पिठोरी अमावस्या की तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि शुक्रवार, 22 अगस्त दोपहर 11.57 बजे से लेकर शनिवार, 23 अगस्त को सुबह 11.37 बजे तक रहेगी. चूंकि अमावस्या तिथि पर मध्यकाल का विशेष महत्व होता है, इसलिए इस साल पिठोरी अमावस्या 22 अगस्त यानी आज मनाई जा रही है.

पिठोरी अमावस्या पर श्राद्ध करने की विधि

प्रातःकाल में स्नानादि के बाद पितृ पूजन का संकल्प लें. फिर किसी पवित्र स्थान पर बैठें और कुशा हाथ में लेकर पितरों का स्मरण करें. ”ॐ पितृदेवाय नमः” या “ॐ नमः शिवाय” मंत्र से आह्वान करें. तांबे या पीतल के पात्र में जल, तिल, चावल, पुष्प, कुशा डालकर हाथ से अर्पण करें. फिर जल को दक्षिण दिशा की ओर छोड़ते हुए पितरों के नाम का उच्चारण करें. इसके बाद पके हुए चावल, तिल और घी मिलाकर गोल पिंड बनाएं और इन्हें पितरों का अर्पित करें. आखिर में ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन कराएं और अपने सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा करें.

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