हाईकोर्ट बोला-मानसिक रोगी साबित करने डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन काफी नहीं:कहा-ठोस सबूत चाहिए,पत्नी को मेंटल पेशेंट बताकर पति ने मांगा था तलाक

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने तलाक के केस में अहम फैसला सुनाया है। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच ने कहा कि मानसिक बीमारी के आधार पर वैवाहिक संबंध रद्द करने के लिए केवल डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन जरूरी नहीं है।

बल्कि, पत्नी को मानसिक रोगी बताने के लिए पर्याप्त सबूत जरूरी है और साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर की गवाही भी अनिवार्य है। डिवीजन बेंच ने माना कि पति अपनी पत्नी को मानसिक रोगी साबित करने में नाकाम रहा है। लिहाजा, तलाक की अपील को नामंजूर की जाती है।

दरअसल, रायगढ़ निवासी 46 वर्षीय युवक की शादी 3 मार्च 2008 को हुई थी। शादी के बाद उनकी दो बेटियां भी हुई। इसके कुछ साल बाद पति-पत्नी के बीच विवाद शुरू हो गया। फिर 2018 में पत्नी ससुराल छोड़कर अपने मायके चली गई।

इसके बाद वो वापस नहीं लौटी। इस पर पति ने 2021 में फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 12 (1)(बी) के तहत तलाक के लिए परिवाद पेश किया।

फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए पति ने हाईकोर्ट में अपील की थी।

पति ने पत्नी को बताया मानसिक रोगी याचिकाकर्ता पति ने अपनी पत्नी को मानसिक रोगी बताया। साथ ही आरोप लगाया कि शादी से पहले ससुराल पक्ष ने पत्नी को पूर्ण रूप से स्वस्थ बताया था। लेकिन, शादी के बाद उसका व्यवहार असामान्य हो गया।

वह अचानक चीखने-चिल्लाने लगी। कभी सामान फेंकती तो कभी बच्चों को मारने-पीटने लग जाती। उसे डॉक्टर के पास लेकर जाने पर पता चला कि वो सिजोफ्रेनिया से पीड़ित है।

फैमिली कोर्ट ने खारिज की तलाक की अर्जी फैमिली कोर्ट में याचिकाकर्ता की पत्नी ने बताया कि वह साल 2018 से अपने मायके में रह रही है, जिसे आधार बनाकर पति ने तलाक के लिए अर्जी लगाई है। साथ ही उसे मानसिक रोगी बताने के लिए डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन बना लिया है।

दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैमिली कोर्ट ने माना कि पति यह साबित करने में नाकाम रहा कि पत्नी विवाह के समय से ही सिजोफ्रेनिया की मरीज थी। जिसके आधार पर पति की तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया।

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