बिलासपुर | छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित शराब घोटाले में जेल में बंद पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा की जमानत याचिका पर हाईकोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। जस्टिस अरविंद वर्मा की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। लखमा की ओर से वकील हर्षवर्धन परगनिहा ने तर्क दिया कि उन्हें बिना ठोस सबूत के राजनीतिक षड्यंत्र के तहत फंसाया गया है।
लखमा को ED ने 15 जनवरी को गिरफ्तार किया था। इस मामले में ईओडब्ल्यू ने भी केस दर्ज कर चार्जशीट पेश की है। बचाव पक्ष का कहना है कि केवल गवाहों के बयानों पर कार्रवाई हुई है, जबकि लखमा के खिलाफ प्रत्यक्ष सबूत मौजूद नहीं हैं।
वहीं, सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता विवेक शर्मा ने अदालत को बताया कि चार्जशीट में स्पष्ट है कि लखमा के सरकारी बंगले में हर महीने करीब 2 करोड़ रुपए कमीशन पहुंचाया जाता था। ED ने दावा किया कि 2019 से 2022 तक चले शराब घोटाले से लखमा को लगभग 72 करोड़ रुपए मिले, जिनका इस्तेमाल बेटे के मकान और कांग्रेस कार्यालय के निर्माण में हुआ।
जांच में सामने आया कि तत्कालीन सरकार के कार्यकाल में IAS अधिकारी अनिल टुटेजा, आबकारी विभाग के एमडी एपी त्रिपाठी और कारोबारी अनवर ढेबर के साथ मिलकर शराब सिंडिकेट ने 2100 करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला किया। ED ने आरोप लगाया कि लखमा इस सिंडिकेट का अहम हिस्सा थे और शराब नीति में बदलाव कर FL-10 लाइसेंस दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई।
जांच एजेंसियों के मुताबिक इस घोटाले के तीन हिस्से थे— शराब निर्माताओं से रिश्वत लेकर खरीद-बिक्री, ऑफ-द-बुक देसी शराब की बिक्री और विदेशी शराब के लाइसेंसधारकों से कमीशन वसूली। इन तरीकों से अवैध कमाई सीधे सिंडिकेट और नेताओं तक पहुंचाई जाती थी।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जमानत पर फैसला सुरक्षित रखा है।