हाईकोर्ट ने SECL कर्मचारियों को बरी किया, CBI कोर्ट का फैसला रद्द

बिलासपुर | छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रिश्वतखोरी के मामले में दोषी ठहराए गए साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) के दो कर्मचारियों को बड़ी राहत दी है। जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले को रद्द करते हुए दोनों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में विरोधाभास है और दोषसिद्धि तथ्यों पर आधारित नहीं है।

दरअसल, SECL के कोरबा जिले के छुराकछार खदान में पदस्थ कर्मचारी नित्यानंद और उसके सहयोगी पर आरोप था कि उन्होंने एक बर्खास्त कर्मचारी से प्रोविडेंट फंड राशि जारी करने के एवज में 10 हजार रुपए की रिश्वत मांगी थी। बाद में यह रकम घटाकर 2 हजार रुपए कर दी गई। शिकायतकर्ता ने इसकी जानकारी सीबीआई को दी, जिसके बाद 8 नवंबर 2004 को ट्रैप कार्रवाई कर दोनों कर्मचारियों को पकड़ा गया।

सीबीआई की विशेष अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद दोनों को डेढ़ साल कैद और तीन हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। हालांकि, हाईकोर्ट में अपील दायर कर आरोपियों ने इस फैसले को चुनौती दी। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट का निर्णय कानूनी रूप से उचित नहीं था और अभियोजन पक्ष ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत आवश्यक स्वीकृति भी नहीं ली।

सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि कथित रिश्वत की रकम आरोपियों के पास से नहीं, बल्कि कबाड़खाने से बरामद हुई थी। वहीं, सीबीआई अधिकारियों और शिकायतकर्ता के बयानों में गंभीर विरोधाभास पाए गए। इन परिस्थितियों को देखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि विशेष अदालत ने सबूतों की सही तरीके से समीक्षा नहीं की।

हाईकोर्ट ने दोनों कर्मचारियों को बरी करने का आदेश देते हुए यह भी निर्देश दिया कि वे 25 हजार रुपए का व्यक्तिगत बांड और समान राशि का जमानतदार प्रस्तुत करें। यह बंधपत्र छह महीने तक प्रभावी रहेगा। साथ ही, कोर्ट ने यह शर्त भी लगाई कि अगर इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील होती है तो आरोपियों को वहां उपस्थित होना होगा।

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